सत्ता का हिस्सा बनने के लिए बेताब है आदमपुर सवाल भव्य की जीत का नहीं जीत-हार के अंतर का
हिसार की आदमपुर विधानसभा सीट पर 3 नवंबर को मतदान होगा। भजनलाल परिवार की इस परंपरागत सीट पर इस बार चौधरी भजनलाल की तीसरी पीढ़ी पहली बार चुनाव मैदान में है। भजनलाल के पोते व कुलदीप विश्नोई के पुत्र भव्य बिश्नोई का मुकाबला कांग्रेस के चतुर और वरिष्ठ नेता जयप्रकाश से है। जयप्रकाश यानी जेपी के बहाने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा एक तरह से सीधे कुलदीप को चुनौती दे रहे हैं। हुड्डा ने कभी भी कुलदीप को कांग्रेस में आगे नहीं आने दिया और इस बार भी उनकी कोशिश भव्य को रोककर भाजपा में कुलदीप की राह को कठिन बनाना ही है। लेकिन, आदमपुर में उनकी दाल शायद ही गल पाए। यदि जमीनी हालात को देखें और स्थानीय प्रेक्षकों की मानें तो इस बार भव्य की जीत उनके नाम के मुताबिक भव्य होने जा रही है।
2005 में हुड्डा के मुख्यमंत्री बनने के बाद से आदमपुर हलका सरकारों की बेरुखी का शिकार रहा है। 2007 में चौधरी भजनलाल के कांग्रेस से अलग होने के बाद आदमपुर सीट पर परिवार का तो कब्जा रहा, लेकिन कुलदीप लगातार विपक्ष में ही रहे, जिसकी वजह से यह हलका पिछड़ता ही रहा। अब 17 साल के बाद आदमपुर के लोगों को प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी का हिस्सा होने का मौका मिल रहा है तो वे इस मौके का लाभ उठाने में देरी नहीं करेंगे।
2019 के विधानसभा चुनावों में कुछ ही फासले से अपने दम पर बहुमत हासिल करने में नाकाम रही भाजपा के लिए 2024 में कुलदीप ट्रंप का पत्ता साबित हो सकते है। प्रदेश की करीब एक दर्जन से अधिक सीटें ऐसी हैं, जहां पर कुलदीप का प्रभाव है और इनमें अधिकांश पर पिछले चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है। यही वजह है कि भाजपा को आने वाले दो सालों में कुलदीप महत्व देना ही होगा। कुलदीप की छवि वैसे भी एक साफ सुथरे और ईमानदार नेता की है। कुलदीप भाजपा में आने के बाद से ही लगातार आदमपुर में विकास के कार्यों को कराने की कोशिश कर रहे हैं। अादमपुर ही नहीं बरवाला, हांसी, हिसार, नलवा, नारनौंद और उकलाना में भी कुलदीप का प्रभाव है। भिवानी लोकसभा क्षेत्र की सिवानी, लोहारू, बवानीखेड़ा, चरखी दादरी और तोशाम सीट पर भी कुलदीप का ठीकठाक असर है। इन सभी तथ्यों को देखते हुए उपचुनाव के बाद भाजपा में कुलदीप का कद बढ़ना तय है। हालांकि, कुलदीप मौके पर चौका मारने में अक्सर चूकते रहे हैं और गलत फैसले करते रहे हैं। अगर उन्होंने 2014 में भाजपा का साथ न छोड़ा होता तो आज हरियाणा की राजनीति में उनका कद और भी बड़ा होता।
यह बात आदमपुर के मतदाताओं को भी समझ आ रही है और वे इनेलो या कांग्रेस में से किसी पर भी भी भरोसा करने के लिए तैयार नहीं हैं। बालसंमद में एक बुजुर्ग कहते हैं कि हमने सालों तक सत्ता की बुलंदी देखी है और पिछले 22 सालो में हमारे वजूद को मिटाने की हर कोशिश हुई है। यह दिखाया गया कि आदमपुर की कोई हैसियत ही नहीं है। अब एक मौका मिला है तो हम इसे ऐतिहासिक बनाने से कैसे चूक सकते हैं। भाजपा के हिसार जिले के कोषाध्यक्ष तरुण जैन बताते हैं कि आदमपुर में भव्य को जिस तरह का समर्थन मिल रहा है उससे मतदान से पहले ही उनकी जीत तय मानी जा रही है अब सवाल यह है कि जीत-हार का अंतर कितना बड़ा होगा।
उधर, पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा के लिए भी यह चुनाव कम महत्वपूर्ण नहीं है। इसीलिए उन्होंने प्रदेश की राजनीति के सबसे चतुर खिलाड़ी जेपी को आदमपुर से उतारा है। जेपी चुनाव जीतने के लिए हर पैतरा अपना सकते हैं और जाट मतदाताओं पर उनका असर भी है। लेकिन, आदमपुर में वह सफल हो पाएंगे इसमें शक ही है। आदमपुर में भजनलाल परिवार के प्रभाव के बावजूद 2005 के बाद 17 सालों में मतदाताओं की एक बड़ी संख्या उन युवाओं की है, जिन्होंने चौधरी भजनलाल का शासन देखा ही नहीं और न ही उन पर परिवार का कोई प्रभाव है। ऐसे में ये युवा गेमचेंजर भी हो सकते हैं। हालांकि युवा भव्य बिश्नोई इनको प्रभावित भी कर सकते हैं। भव्य खुद यहां पर जिस तरह से युवाओं से मिल रहे हैं वह उनके प्रभाव को दिखा रहा है।
आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी सतेंद्र सिंह ने कांग्रेस छोड़कर झाड़ू थामा है और वे अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, लेकिन उनका पिछला प्रदर्शन कोई बहुत दमदार नहीं रहा, इसलिए वह इस बार कितना आगे बढ़ पाते हैं, यह देखना रोचक होगा। आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल पंजाब में जीत के बाद अति आत्मविश्वास में भरे दिख रहे हैं और अपने गृहराज्य में उनकी कितनी जमीन है, यह भी आदमपुर में दिख जाएगा।
इन सबसे अलग, अगर देखें तो आदमपुर का चुनाव जितने मायने कुलदीप बिश्नोई के लिए रखता है, उतना और किसी के लिए नहीं आदमपुर का परिणाम कुलदीप की राजनीति को ठहराव दे सकता है। क्योंकि 2007 में हरियाणा जनहित कांग्रेस के गठन के बाद से ही वह अभी तक राजनीति में बहुत प्रभावी भूिमका नहीं निभा सके हैं। सितारे भी कभी उनके साथ नहीं रहे। 2014 के लोकसभा चुनाव में दुष्यंत चौटाला के हाथों मिली हार ने उनकी राजनीतिक यात्रा को ही दिशाहीन बना दिया। उन्होंने विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा से गठबंधन तोड़ा और फिर कांग्रेस में शामिल होकर एक के बाद दूसरी गलती की। अगर वह अब भाजपा में टिक कर राजनीति करते हैं तो आने वाले समय में पार्टी में उनकी भूमिका अहम हो सकती है। हरियाणा भाजपा में वैसे भी कोई नेता नहीं है, जो कुलदीप के समान व्यापक जनाधार रखता हो।