एक डॉक्टर जो साहित्य को अपनी रखैल कहता था
गरीबों का दर्द न देख सकने वाले इस लेखक को प्रेमचंद ने माना था दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कथाकार
आंंतोन चेखव एक ऐसे रूसी कथाकार, उपन्यासकार और नाटककार थे जो पेशे से डॉक्टर थे। इसीलिए उन्होंने एक बार कहा कि दवा मेरी वैध पत्नी है और साहित्य मेरी रखैल। चेखव ने लिखने की शुरुआत पैसा कमाने के लिए की, लेकिन जैसे-जैसे उनकी कलात्मक महत्वाकांक्षाएं जाग्रत हुई, उन्होंने कुल अौपचारिक नवाचार किए, जिसे आधुनिक लघुकथा के विकास को प्रभावित किया। उन्होंने इससे पाठकों को हुई असुविधा के लिए किसी तरह की माफी मांगने की बजाय, इस बात पर जोर दिया कि कलाकार का काम सवाल उठाना है न कि उनका जवाब देना। 29 जनवरी 1860 को जन्मे चेखव का जन्म रूस के तगानरोग में एक दुकानदार के घर में हुआ था। लेकिन 1876 में उनके पिता दिवालिया हो गए, क्योंकि वह एक बड़ा घर बना रहे थे और ठेकेदार ने उनको ठग लिया था। कर्जदारों की जेल से बचने के लिए वह मास्को से भाग गए। इससे पूरे परिवार की जिम्मेदारी चेखव पर आ गई। उन्होेंने परिवार और अपने खर्चों को पूरा करने के लिए निजी ट्यूशन पढ़ाना, गोल्फिंच चिड़िया को पकड़कर बेचना और कई अन्य कामों के साथ ही अखबारों के लिए शॉर्ट स्केच बनाकर बेचना शुरू किया। 1879 में उनका एडमीशन मास्को मेडिकल कॉलेज में हो गया। वहां पर अपनी फीस व अन्य खर्चे निकालने के लिए उन्होंने लिखना शुरू किया और 1880 में अपनी पहली कहानी प्रकाशित की। 1886 में ‘रंगबिरंगी कहानियाँ’ नामक उनका संग्रह प्रकाशित हुआ और 1887 में पहला नाटक ‘इवानव’। 1890 में चेखव ने सखालिन द्वीप की यात्रा की जहां उन्होंने देशनिर्वासित लोगों के कष्टमय जीवन का अध्ययन किया। इस यात्रा के फलस्वरूप ‘सखालिन द्वीप’ नामक पुस्तक लिखी। 1892 से 1899 तक चेखव मास्को के निकटवर्ती ग्राम ‘मेलिखोवो’ में रहे। इन वर्षों में अकाल के समय चेख़व ने किसानों की सहायता की और हैजे के प्रकोप के समय सक्रिय रूप से डाॅक्टरी करते रहे। 1899 में चेख़व बीमार पड़े जिससे वे क्रिम (क्राइमिया) के यालता नगर में बस गए। वहाँ चेखव का गोर्की से परिचय हुआ।
अन्तोन चेख़व की कहानियों में सामाजिक कुरीतियों का व्यंगात्मक चित्रण किया गया है। अपने लघु उपन्यासों ‘सुख’ (1887), ‘बांसुरी’ (1887) और ‘स्टेप’ (1888) में मातृभूमि और जनता के लिए सुख के विषय मुख्य हैं। ‘तीन बहनें’ (1900) नाटक में सामाजिक परिवर्तनों की आवश्यकता की झलक मिलती है। ‘किसान’ (1897) लघु उपन्यास में जार कालीन रूस के गांवों की दुखमय कहानी प्रस्तुत की गई। अपने सभी नाटकों में चेखव ने साधारण लोगों की मामूली जिंदगी का सजीव वर्णन किया है। चेखव का प्रभाव अनेक रूसी लेखकों, बुनिन, कुप्रिन, गोर्की आदि पर पड़ा। यूरोप, एशिया और अमेरिका के लेखक भी चेखव से प्रभावित हुए। प्रेमचंद तो कहते थे कि ‘चेखव संसार के सर्वश्रेठ कहानी लेखक’ हैं। केवल 44 साल की उम्र में 1904 में उनका निधन हो गया था।