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आजादी के महज छह दिन बाद ही पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जे के लिए तैयार कर लिया था ऑपरेशन गुलमर्ग

पख्तूनों के 20 लश्कर यानी 20 हजार कबालियों ने करना था जम्मू तक कब्जा, हरिसिंह के मुस्लिम सैनिकों ने भी कर दी थी बगावत

भारत में कश्मीर का विलय एक ऐसी घटना है, जिसको पाकिस्तान आज तक पचा नहीं सका है। कश्मीर के एक हिस्से पर जबरन व अवैध कब्जे के बावजूद उसे लगता है कि पूरा कश्मीर उसके ही पास होना चाहिए। भारत से सीधी लड़ाई की ताकत न होने के कारण वह पिछले सात दशकों में भारत के खिलाफ परोक्ष युद्ध छेड़े हुए है। असल में देश के विभाजन के बाद से ही कश्मीर को देखकर पाकिस्तान की लार टपक रही थी और उसने अपनी आजादी के महज छह दिन बाद ही 20 अगस्त 1947 को ऑपरेशन गुलमर्ग की लागू कर दिया था। इस ऑरेशन का उद्देश्य कश्मीर पर कब्जा करना था। इस ऑपरेशन के तहत पाकिस्तान ने पख्तून कबायलियों के 20 लश्कर तैयार करके कश्मीर भेजने थे और हर लश्कर में 1000 कबायली थे। इनको बान्नु, वाना, पेशावर और नौशेरा में हथियारों का प्रशिक्षण दिया गया। कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने भारत व पाकिस्तान दोनों ही देशों में शामिल होने से इनकार करते हुए अपनी अलग पहचान कायम रखने का फैसला किया था। हरिसिंह की यही भूल उन्हें भारी पड़ गई। पाकिस्तान ने इसका फायदा कबायलियों और कबायलियों के वेश में अपने सैनिकों को श्रीनगर पर कब्जा करने के लिए भेज दिया। 22 अक्टूबर 1947 को ये कबायली कश्मीर की सीमा में दाखिल हो गए और सीमांत इलाकों में भारी मारकाट और बलात्कार करते हुए आगे बढ़ने लगे । इन पर काबू करने के लिए महाराजा हरिसिंह ने अपने सैनिकों को भेजा, लेकिन उनकी सेना के मुस्लिम सैनिक हमलावरों को रोकने की बजाय खुद ही अपने साथी सैनिकों को मारने लगे। हालात हाथ से निकलते देखकर हरिसिंह ने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई, लेकिन भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि कश्मीर के भारत में विलय के बाद ही वह श्रीनगर सेना भेजेगा। उधर, कबायली अत्याचार करते हुए श्रीनगर के बेहत करीब पहुंच गए। उनकी कोशिश श्रीनगर एयरपोर्ट पर कब्जा करने की थी, ताकि कोई भी बाहरी मदद समय पर न पहुंच सके। 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने कश्मीर का भारत में वैध तरीके से विलय कर दिया, जिसके बाद भारतीय सेना श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतर गई। इसके बाद पाकिस्तान बौखला गया। उसने अपने सैनिकों को युद्ध में भेजने के लिए कहा। लेकिन पाकिस्तान के ब्रिटिश जनरल ने कश्मीर के भारत में विलय का हवाला देते हुए सेना न भेजने की सलाह दी। आपको बता दें कि आजादी के कुछ समय बाद तक भारतीय व पाकिस्तानी सेनाओं की कमान ब्रिटिश अफसरों के ही हाथ में थी। फील्ड मार्शल क्लोडेोडे औचिनलेक दोनो सेनाओं के सुप्रीम कमांडर थे। उनके हाथ में सिर्फ सेनाओं की प्रशासनिक कमान थी, ऑपरेशनल कमान भारत व पाकिस्तान की सरकारों के ही पास थी। वहीं जनरल रॉबर्ट लॉकहार्ट भारत के और जनरल फ्रैंक मैसर्वी पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष थे।

पाकिस्तान ने कश्मीर के भारत में विलय को मानने से इनकार कर दिया था। उसने दावा किया यह जालसाजी और हिंसा से किया गया है। पाकिस्तान के तत्कालीन गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तानी सेना को कश्मीर में घुसने के लिए कहा था, लेकिन जब अंग्रेज अफसरों ने इससे इनकार कर दिया तो उन्होंने कबायली हमलावारों को सैन्य साजो सामान और हथियार भेजने शुरू कर दिए। उधर, भारतीय सैनिकों ने इन कबालियों को खदेड़ना शुरू कर दिया। मई 1948 में पाकिस्तानी सेना इस संघर्ष में खुलकर सामने आ गई। हालांकि, इस बार उसने ऐसा करना अपनी सीमा की रक्षा के लिए बताया, लेकिन उसका इरादा कश्मीर में आगे बढ़ने का था। भारतीय सैनिकों ने कई इलाकों को कबायलियों और पाकिस्तानी सैनिकों के कब्जे से मुक्त करा दिया। 13 अगस्त 1948 को दोनों देशों के बीच युद्धविराम हो गया। लेकिन, कश्मीर में लड़ाई आज भी जारी है।

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