हरियाणा के हिसार से सटे भिवानी जिले के बवानीखेड़ा तहसील में छोटा सा गांव है रोहनात। इस गांव का इतिहास जितना गौरवशाली है, यह उतना ही पिछड़ा हुआ है। हालांकि, हाल के दिनों में रंगकर्मी मनीष जोशी के प्रयासों से इस गांव के बारे में प्रदेश सरकार के कान पर जूं रेंगी है और गांव के इतिहास को लेकर मनीष के नाटक का सरकार ने पूरे प्रदेश में मंचन कराने का आदेश दिया है। इसके बावजूद देश के अन्य हिस्सों में बहुत ही कम लोग इस गांव की गौरव गाथा को जानते हैं। यह ऐसा गांव है जहां पर अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग से भी बर्बर अत्याचार किए थे, गांव के लोगों ने गोरी सरकार के सामने सिर झुकाने से इनकार कर दिया। लेकिन, यहां के वीरों की कहानियों को न तो राज्य में और न ही देश में वैसा स्थान मिला, जिसके वे हकदार थे।
1857 की क्रांति के समर्थन में 29 मई 1857 को इस गांव के लोगों ने स्वामी वरणदास बैरागी, रूपा खाती व नौंदा जाट के नेतृत्व में आसपास के ग्रामीणों के साथ एकजुट होकर हांसी में स्थित अंग्रजों की छावनी पर हमला बोल दिया। उन्होंने वहां पर अनेक अंग्रेज अफसरों को मार डाला और सभी कैद क्रांतिकारियों को छुड़ा लिया। उन्होंने अंग्रेजों के हथियार और खजाना भी लूट लिया। इस घटना ने अंग्रेज हुकूमत की चूलें हिला दीं। तत्काल ही जनरल कोर्टलैंड की अगुवाई में दिल्ली से एक पलाटून को क्रांतिकारियों पर नियंत्रण करने के लिए भेजा गया। कोर्टलैंड ने हांसी पहुंचते ही रोहनात पर हमले का आदेश दिया। अंग्रेजों ने तोपें लेकर अंधाधुंध हमला करके अनेक लोगों को मार गिराया। उन्होंने क्रांतिवीर वरणदास बैरागी को तोप के मुहाने पर बांधकर बम से उड़ा दिया। रूपा खाती व नौंदा जाट भी अंग्रेजों के हमले में शहीद हो गए। अनेक युवकों को अंग्रेजों ने गांव में स्थित बरगद के पेड़ से लटकाकर सरेआम फांसी दे दी। अंग्रेज सेना ने लोगों पर इतने अत्याचार किए कि महिलाओं ने अपनी इज्जत बचाने के लिए ढाब जोहड़ में कूदकर जान दे दी। जो ग्रामीण जिंदा बचे, उनसे अंग्रेजों ने क्रांति का समर्थन करने के लिए माफी मांगने के लिए कहा, लेकिन रोहनात के महावीरों ने अंग्रेजों की तोपों के आगे भी झुकने से मना कर दिया। गुस्साए जनरल ने सभी को बांधकर हांसी ले जाने का आदेश दिया। वहां पर ग्रामीणों को अनेक तरह की यातानाएं दी गईं, लेकिन वे अपने रुख से से नहीं डिगे।
इससे जनरल पोर्टलैंड का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने सभी ग्रामीणों को बीच सड़क पर लिटाकर रोडरोलर से रौंद दिया। पूरी सड़क ग्रामीणों के खून से लाल हो गई। उस दिन से इस सड़क का नाम ही लाल सड़क पड़ गया। यह सड़क आज भी हांसी में मौजूद है। अंग्रेज जनरल का गुस्सा इतने पर भी शांत नहीं हुआ और उसने पूरे गांव को ही नीलाम करवा दिया।
यही वजह है कि आज भी रोहनात के लोग गांव की जमीन को अपनी नहीं मानते हैं और वे खुद को आजाद भी नहीं मानते हैं। वे चाहते हैं सरकार उनके गांव को नीलामी के अभिशाप से मुक्त कराए, ताकि गांव के लोग भी सम्मान के साथ आजाद जीवन जी सकें। अंग्रेजों ने रोहनात का नाम ही बागियों का गांव कर दिया था। इस गांव की आबादी 5000 से अधिक है। हालांकि 2011 की जनगणना के मुताबिक गांव में कुल 711 घर थे।