बोफोर्स कंपनी का अल्फ्रेड नोबेल से क्या संबंध था?
‘मौत के व्यापारी की मौत’ शीर्षक से छपे मृत्युलेख को पढ़कर क्यों डर गए थे डायनामाइट के आविष्कारक?
जब दुनिया के सर्वोच्च पुरस्कार की बात आती है तो नोबेल पुरस्कार का नाम ही जुबां पर आता है। इस पुरस्कार को जो सम्मान हासिल है, उसकी कई वजह हैं। सबसे अहम है विजेता का चयन। इसके अलावा विजेताओं के चयन की पारदर्शी व विश्वसनीय प्रक्रिया। सबसे पहले बता दें कि इस पुरस्कार का नाम विख्यात वैज्ञानिक और डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल के नाम पर है। अल्फ्रेड नोबेल एक वैज्ञानिक होने के साथ ही एक इंजीनियर और उद्योगपति भी थे। स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में 1833 में जन्मे अल्फ्रेड नोबेल डायनामाइट के आविष्कार के लिए ही चर्चित हैं, लेकिन आपको बता दें कि नोबेल ने अपने जीवन काल में 355 आविष्कार किए थे। उन्होंने ने ही बैलीसाइट का भी आविष्कार किया था, जिसका इस्तेमाल मिलिट्री के लिए धुआं रहित विस्फोटक बनाने में किया जाता है।
नोबेल ने 1894 में बोफोर्स आयरन और स्टील मिल को खरीदा और इसे एक हथियार बनाने वाले कारखाने में बदल दिया। यह वही बोफोर्स कंपनी है, जिसकी तोपों ने भारत में जबरदस्त राजनीतिक धमाका किया था और दिल्ली की सरकार को बदल दिया था। हालांकि बोफोर्स तोप का आविष्कार 1930 में हुआ था। नोबेल दिसंबर 1896 में अपनी मौत से पहले तक बोफोर्स के मालिक रहे।
अपने हथियारों के व्यापार व डायनामाइट सहित अपने 355 आविष्कारों के दम पर नोबेल ने अपनी जिंदगी में काफी धन कमाया। लेकिन, एक फ्रेंच अखबार की गलती ने अल्फ्रेड नोबेल की जिदंगी को बदल दिया। 1988 में एक फ्रेंच अखबार में ‘मौत के व्यापारी की मौत’ शीर्षक से अपनी ही मृत्यु का लेख पढ़कर अल्फ्रेड नोबेल चौंक गए। वास्तव में मौत अल्फ्रेड के भाई लुडविग नोबेल की हुई थी। इस लेख ने नोबेल को यह सोचने के लिए चिंतित कर दिया कि मौत के बाद उन्हें कैसे याद किया जाएगा। इसी वजह से उन्होंने अपनी वसीयत को बदल दिया। इस घटना के आठ साल बाद 63 साल की उम्र में 10 दिसंबर 1896 को इटली में नोबेल की मौत हो गई।
नोबेल ने अपने जीवनकाल में अपनी वसीयत को अनेक बार लिखा था। उन्हाेंने अपनी वसीयत को अंतिम बार अपनी मौत से एक साल पहले लिखा था। उन्होंने 27 नवंबर 1895 को पेरिस के एक स्वीडिश-नार्वेजियन क्लब में इस पर हस्ताक्षर किए थे। व्यापक पैमाने पर लोगों को चौंकाते हुए नोबेल ने अपनी संपत्ति का इस्तेमाल भौतिकी, रसायन, फिजियोलाॅजी या चिकित्सा, साहित्य और शांति के पांच क्षेत्रों में ‘मानवता की महान भलाई’ के लिए काम करने वालों को पुरस्कार देने में करने के लिए कहा था।