लोकरंग

उनाकोटि : पत्थरों पर तराशा हुआ आश्चर्य

हिंदू धर्म की व्यापकता व भव्यता की ही तरह हिंदुओं के पूजा स्थल भी हैं। विदेशों में अंकोरवाट से लेकर दक्षिण के भव्य मंदिर, नेपाल सहित हिमालयी राज्यों में धाम और बंगाल, महाराष्ट्र से लेकर पूरे पूर्वोत्तर में हिंदुओं के ऐसे-ऐसे धर्म स्थल हैं, जिन्हें देखकर लगता है कि इन्हें कब और किसने बनाया होगा। ऐसा ही एक स्थल है उनाकोटि। त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 178 किलोमीटर की दूरी पर उनाकोटि जिले में पहाड़ों के बीच यह तराशा हुआ आश्चर्य है। यह एक ऐसी जगह हैं, जहां पहाड़ों पर 99 लाख 99 हजार 999 प्रतिमाएं तराशी गई हैं। असल में उनाकोटि का अर्थ ही होता है एक करोड़ में एक कम। स्थानीय भाषा कोकबोरोक में इसे सुबरई खंग कहते हैं। यहां पर दो तरह की मूर्तियां हैं- पहली चट्टानों पर उकेरे चित्र और दूसरी पत्थर की मूर्तियां।

यहां पर पत्थरों पर उकेरा गया मुख्य चित्र भगवान शिव का है, जिसे उन्नाकोटिश्वर काल भैरव कहते हैं। शिव की चट्टान पर उकेरी यह मूर्ति तीस फीट से अधिक ऊंची है। भगवान के सिर पर एक मुकुट है, जिसकी ऊंचाई 10 फीट है। इसके एक ओर मां दुर्गा सिंह पर विराजमान हैं। भगवान के सिर से गंगा की धारा भी निकल रही है। यहां पर ही आधे जमीन में दबे नंदी की भी मूर्तियां भी हैं। यहां पर भगवान गणेश की भी विशाल प्रतिमा है।

क्या है मान्यता – कहा जाता है कि भगवान शिव ने एक बार काशी जाते समय यहां पर एक रात बिताई थी। उनके साथ 99 लाख 99 हजार 999 अन्य देवी-देवता भी थे। भगवान ने सबको सूर्योदय के पहले उठकर काशी के लिए चलने को कहा, लेकिन उनके सिवाय कोई नहीं उठा। कुपित होकर भगवान ने सबको पत्थर का बना दिया। यहां के स्थानीय आदिवासियों के मुताबिक यह सभी मूर्तियां कल्लू कुम्हार ने बनाई हैं। उनके मुताबिक कल्लू कुम्हार माता पार्वती का परम भक्त था और वह कैलाश पर्वत पर जाना चाहता था। माता पार्वती की जिद पर भगवान शिव कल्लू को अपने साथ ले जाने के लिए राजी हो गए, लेकिन उन्होंने एक शर्त रख दी कि उसे एक रात में भगवान शिव की एक करोड़ मूर्तियां बनानी होंगी। धुन का पक्का कल्लू मूर्तियां बनाने में लग गया, लेकिन सुबह होने तक वह एक करोड़ से एक मूर्ति कम बना पाया। इस वजह से भगवान उसे छोड़कर चले गए। यहां पर हर साल अप्रैल में अशोकअष्टमी मेला मनाया जाता है। जिसमें हजाराें लोग हिस्सा लेते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button