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क्या भाभा की मौत सच में एक गहरी साजिश थी?

भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक डाॅ. होमी जहांगीर भाभा की मौत एक ऐसी घटना है, जिसने भारत के एटमी ताकत बनने के सपने को कई साल पीछे कर दिया था। असल में भाभा एक बहुत ही दूरदर्शी और खुली बात कहने वाले वैज्ञानिक थे। वह आजादी के बाद के राजनीतिक नेतृत्व की तरह दिखावा करने की बजाय, जमीनी हकीकत के मुताबिक फैसले लेने के पक्षधर थे। इसीलिए उनका स्पष्ट मानना था कि भारत को परमाणु बम बनाना चाहिए। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से इसकी अनुमति भी मांगी, लेकिन नेहरू ने उन्हें रोक दिया। हालांकि नाभिकीय ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए काम करने की उन्हें पूरी छूट दी गई।

चीन और पाकिस्तान द्वारा भारत पर किए गए हमलों से भाभा बहुत चिंतित थे। भाभा को लगता था कि अगर भारत के पास एटम बम होता तो ये दोनों देश भारत पर हमला करने से पहले कई बार सोचते। 1965 में भाभा ने आकाशवाणी पर घोषणा की कि अगर भारत सरकार उन्हें अनुमति देती है तो वह 18 महीने के भीतर भारत को नाभिकीय हथियार वाला देश बना सकते हैं। उनके इस बयान ने दुनिया की तमाम शक्तियों के भीतर एक सिहरन पैदा कर दी। बस यहीं से भाभा दुनिया, विशेषकर अमेरिका की आंखों की किरकिरी बन गए। यही नहीं भारत की रूस के साथ दोस्ती भी अमेरिका को चुभने लगी। 24 जनवरी 1966 को भाभा एक कॉन्फ्रेंस के लिए एयर इंडिया के बोइंग 707 से वियना जा रहे थे। एयर इंडिया की यह प्लाइट 101 जब आल्पस की पहाड़ियों में मों ब्लां के पास थी तो अचानक ही विमान में विस्फोट हुआ और उसका मलबा बर्फ से ढकी पहाड़ियों पर बिखर गया। देश ने अपने हीरे भाभा को खो दिया। आधिकारिक रूप से इस हादसे की वजह जेनेवा एयरपोर्ट और विमान के पायलट के बीच हुई गलतफहमी को बताया गया, जिसकी वजह से विमान पहाड़ी से टकराया। इस हादसे के पीछे अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए का हाथ माना गया, लेकिन इस पर कोई भी खुलकर नहीं बोला और हादसे की गहराई से जांच भी नहीं हुई।

लेकिन, इस हादसे के 42 साल बाद 11 जुलाई 2008 को एक मीडिया संस्थान टीबीआरन्यूज.ओआरजी ने पत्रकार ग्रेगरी डगलस और सीआईए एजेंट रॉबर्ट क्राउली के बीच हुई बातचीत को प्रकाशित किया। जिसमें क्राउली ने दावा किया कि जिस विमान हादसे में भाभा की मौत हुई उसके कार्गो में एक बम रखा गया था। क्राउली ने साफ कहा कि हम मुश्किल में थे। भारत ने 60 के दशक में ही एटम बम पर काम शुरू कर दिया था और इससे भी खराब यह था कि वह रूस के साथ मिलकर इसे बना रहा था। काउली ने भाभा के बारे में कहा कि वह बहुत खतरनाक थे।

इस बातचीत से साफ है कि अमेरिका भाभा के इरादों से बहुत डरा हुआ था। यही वजह थी कि वह हर युद्ध में पाकिस्तान को गुपचुप मदद भी कर रहा था। भारत के बम बनाने की क्षमता हासिल करने के भाभा के दावे ने अमेरिका को मुश्किल में डाल दिया था और वह कैसे न कैसे भाभा से छुटकारा चाहता था। कुल मिलाकर देश के राजनीतिक नेतृत्व की कमजोरी और अमेरिकी साजिश ने हमारे परमाणु कार्यक्रम को कई साल पीछे तो धकेल ही दिया था।

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