क्या कांग्रेस छोड़ने की वजह से सर छोटूराम की उपलब्धियों की उपेक्षा की गई?
सर छोटूराम भारतीय इतिहास का वह बड़ा नाम है, जिसने उस दौर में भारतीय किसानों की लड़ाई लड़ी जब इस देश पर अंग्रेजी शासन था। सर छोटूराम ने किसानों के हितों के लिए अंग्रेजी शासन से ऐसे कानून बनावाए जो आज भी प्रासंगिक हैं और किसानों की बेहतरी की दिशा में मील का पत्थर साबित हुए हैं। सर छोटूराम ने किसानों की अंग्रेजों के सामने ऐसी पैरवी की कि न चाहते हुए भी अंग्रेजों को उनके आगे झुकना पड़ा और उनकी मांगे माननी पड़ी। सर छोटूराम महात्मा गांधी का सम्मान करते थे, लेकिन वह उनकी सभी बातों से सहमत हों, ऐसा भी नहीं था। जब गांधीजी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो सर छोटूराम ने उसका समर्थन नहीं किया। इसी के विरोध स्वरूप वह कांग्रेस से अलग हो गए। आजादी के बाद इतिहास में कांग्रेस के लोगों को ही अधिक महत्व मिला, इसलिए सर छोटूराम जैसी दिग्गज शख्सियत के बारे में लोगों को बहुत अधिक नहीं बताया गया।
सर छोटूराम का असली नाम राय रिछपाल था। उनका जन्म 24 नवंबर 1881 को रोहतक के गढ़ी सांपला में हुआ था। उनके पिता चौधरी सुखीराम सिंह और माता सरला देवी थीं। उन्होंने झज्जर से मिडिल स्कूल पास किया और क्रिश्चियन मिडिल स्कूल दिल्ली से 12वीं पास की। हालांकि, धन नहीं होने की वजह से उन्हें यहां काफी संघर्ष करना पड़ा। उनके पिता ने किसी तरह से उनको यहां पर पढ़ाया। यहां पर ही स्कूल के छात्रावास के प्रभारी के खिलाफ उन्होंने पहली हड़ताल की। बाद में उन्होंने 1905 में दिल्ली के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफन कॉलेज से ग्रेजुएशन की। 1905 में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह के सह-निजी सचिव के रूप में कार्य किया और यहीं सन् 1907 तक अंग्रेजी के ‘हिन्दुस्तान’ समाचारपत्र का सम्पादन किया। यहां से वह आगरा वकालत की डिग्री हासिल करने चले गए। आगरा में रहते हुए वह जाट छात्रावास के प्रभारी बने और 1911 में वकालत की डिग्री प्राप्त की। 1912 में उन्होंने जाट सभा की स्थापना की और वकालत की प्रैक्टिस भी शुरू की। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उन्होंने रोहतक के 22 हजार युवाओं को सेना में भर्ती कराया।
बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गए और 1916 में कांग्रेस की जब रोहतक में स्थापना हुई तो इसके प्रमुख बने। लेकिन, जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन शुरू किया तो वह पार्टी से अलग हो गए, क्योंकि वह संविधान विरोधी आंदोलन नहीं करना चाहते थे। वह फिर आर्यसमाज से जुड़ गए और हरियाणा में किसानों के मुद्दों पर लगातार आवाज उठाते रहे। वह किसानों का साहूकारों द्वारा शोषण किए जाने से बहुत दुखी थे। उनके प्रयासों से दो एेसे कानून पास हुए जिनसे किसानों को साहूकारों के चंगुल से मुक्ति मिली। उन्होंने सर सिंकदर हयात खान के साथ मिलकर यूनियनिस्ट जमीदारा पार्टी किसान की स्थापना की। 1937 में पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी की सरकार बनी और सर छोटूराम को विकास व राजस्व मंत्री बनाया गया। सर छोटूराम ने इस पद पर रहते हुए किसानों के हित के लिए अनेक क़ानून बनवाए। साहूकार पंजीकरण एक्ट, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट, कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम, कर्जा माफी अधिनियम, व्यवसाय श्रमिक अधिनियम जैसे क़ानूनों ने किसानों को उनकी फ़सलों का सही मूल्य दिलाने और साहूकारों के फंदे से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने मोरों के शिकार पर भी पाबंदी लगा दी थी। उन्होंने जाट गजट के नाम से एक अखबार भी निकाला था। सर छोटूराम द्वारा किए गए सामाजिक कल्याण के कार्यों के लिए ही उन्हें सर की उपाधि से सम्मानित किया गया था। हरियाणा में आज सभी लोग उनके नाम व काम दोनों से परिचित हैं, लेकिन किसानों के इस मसीहा के बारे में देश के हर व्यक्ति खासकर किसानों को जरूर मालूम होना चाहिए। आजादी से पहले ही 9 जनवरी 1945 को किसानों का यह मसीहा इस दुनिया से कूच कर गया, लेकिन उन्होंने अंग्रेजी शासन के दौरान किसानों के लिए जो किया वह आजादी की किसी लड़ाई को जीतने से कम नहीं था।