सोनिया ने दिया राजनीति से संन्यास का संकेत
कांग्रेस की सर्वोच्च नेता सोनिया गांधी ने सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के संकेत दिए है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में चल रहे कांग्रेस अधिवेशन में अपने संबोधन में सोनिया ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा के साथ ही अब उनकी राजनीतिक पारी को विराम देने का समय आ गया है। अगर सोनिया सच में ऐसा फैसला करती हैं तो वह नेहरू-गांधी परिवार की पहली सदस्य होंगी जो राजनीति से संन्यास लेगा।
आपको बता दें कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि निखर कर सामने आई है। वह एक परिपक्व नेता की तरह उभरे हैं। यह बात सोनिया को आश्वस्त कर रही है कि अब उन्हें राहुल के राजनीतिक भविष्य के लिए चिंतित होने की जरूरत नहीं है। पार्टी के भीतर व बाहर पिछले कुछ समय में जिस तरह से राहुल की स्वीकार्यता बढ़ी है, वह सोनिया को राहत देने वाला भी है। सोनिया ने अपने संबोधन में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर अपने लंबे कार्यकाल की भी चर्चा की। उन्होंने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने से लेकर 2004 व 2009 के चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन का भी जिक्र किया।
सोनिया ने जब पहली बार कांग्रेस की कमान संभाली थी, उस समय कांग्रेस सबसे नाजुक दौर में पहुंच गई थी। अनेक बड़े नेता कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बना चुके थे। तमाम उतार चढ़ावों के बीच सोनिया ने बहुत हद तक कांग्रेस को एक रखा। हाल कि दिनों में जब पार्टी के कई नेताआें ने जी 23 बनाकर कांग्रेस में बदलाव की मांग की तो भी वह एक चट्टान की तरह अडिग रहीं और उन्होंने दबाव में आने की बजाय एक मजबूत नेता के तौर पर इन चुनौतियां का सामने किया। पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र का परिचय देने के लिए चुनाव के द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हुआ और गांधी नेहरू परिवार से बाहर के मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी के अध्यक्ष बने। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि अगर सोनिया राजनीति से संन्यास ले भी लेती हैं तो भी वह पार्टी का पहले की तरह मार्गदर्शन करती रह सकती हैं, क्योंकि मौजूदा अध्यक्ष खड़गे परिवार के ही आदमी हैं और पार्टी में इसके बाद भी सभी प्रमुख फैसलों पर सोनिया की अनौपचारिक सहमति की दरकार जरूर होगी। हां, सोनिया आने वाले समय में चुनाव व राजनीतिक रैलियों और बैठकों से खुद को अलग रख सकती हैं। पूर्व अध्यक्ष के तौर पर वह कांग्रेस कार्यसमिति की पदेन सदस्य तो हमेशा रहेंगी ही। साथ ही पार्टी के सभी गुटों को एक रखने के लिए एक बाइंडिंग फोर्स का काम करती रहेंगी। इससे एक संकेत यह भी मिलता है कि अब प्रियंका पार्टी में अपनी सक्रियता बढ़ा सकती हैं और यह भी संभव है कि सोनिया की रायबरेली सीट से भी प्रियंका ही चुनाव लड़ें।
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