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सेना में रिटायरमेंट के समय बग्गी खींचने की परंपरा खत्म, रात्रि भोजों में नहीं बजेगा बैगपाइपर बैंड

अंग्रेजों के समय के प्रतीकों को मोदी सरकार लगातार बदल रही या हटा रही है। राजपथ से लेकर नई संसद बनाने तक यह सब दिख रहा है। अब सरकार ने भारतीय सेना में जारी अंग्रेजी शासन की परंपराओं को बदलने की शुरुआत की है। जिसके तहत सबसे पहले वरिष्ठ अफसरों की सेवानिवृत्ति या तबादले के समय होने वाले परंपरागत समारोहों में बदलाव किया गया है। आपको बता दें कि भारतीय सेना में आज भी कई ऐसी परंपराएं हैं, जो अंग्रेजी हूकूमत की देन हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों आह्वान किया था कि हमें गुलामी की याद दिलाने वाली परंपराओं से खुद को मुक्त करना चाहिए। इसीलिए अब सेना ने अफसरों की विदाई के समय बग्गी खींचने की परंपरा को खत्म करने का फैसला लिया है। सेना द्वारा जारी दिशा निर्देशों के मुताबिक अब रात्रि भोज के समय बैगपाइपर यानी मशकबाजा बजाने की परंपरा को भी खत्म किया जा रहा है।

सेना में जब भी कमांडिंग ऑफिसर रैंक का कोई अफसर रिटायर होता है तो यूनिट के बाकी ऑफिसर और जवान उन्हें एक बग्गी में बिठाकर उसे खुद खींचकर उनके वाहन तक ले जाते हैं अथवा उनको घोड़ों वाली बग्गी में बिठाकर बाकी अफसर व जवान साथ चलते हैं। अब इस तरह की परंपरा सेना में नहीं रहेगी। सेना के दिशा निर्देशों के मुताबिक बग्गी खींचने वाले घोड़ों का इस्तेमाल अब प्रशिक्षण के लिए किया जाएगा।

हालांकि, सेना के अफसरों का कहना है कि किसी अफसर के तबादले या सेवानिवृत्ति पर बग्गी खींचने की परंपरा अब बहुत कम होती है। यही नहीं बैगपाइपर बैंड भी कुछ इन्फैंटरी यानी पैदल सेना यूनिटों के पास उपलब्ध है। इसलिए रात्रि भोजों के समय इनका इस्तेमाल भी कुछ ही जगहों पर होता है। सेना का कहना है कि राष्ट्रीय भावनाओं के अनुरूप इन परंपराओं को बदला जा रहा है। प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद हो सकता है कि भविष्य में सेना के अलावा बाकी जगहों पर भी ऐसी ही परंपराओं में बदलाव हो। क्योंकि आज भी अंग्रेजों द्वारा शुरू की गई अनेक परंपराओं को यह देश ढो रहा है। इनमें अनेक परंपराएं तो खुद सरकार और संसद द्वारा अपनाई जा रही हैं।

 

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