आखिर रूस क्यों है यूरोप की मजबूरी?
रूस का सस्ता तेल ही नहीं रूसी यूरेनियम भी है यूरोप की जरूरत
रूस-यूक्रेन युद्ध को साल भर से अधिक का समय हो गया है, लेकिन अमेरिका सहित तमाम यूरोपीय देशाें का साथ मिलने के बावजूद उक्रेन अब तक रूस पर कोई दबाव नहीं बना सका है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की को इन देशों से जो हथियार मिल रहे हैं, वे रूस के आक्रमण के सामने नाकाफी हैं। यूरोपीय देश तमाम दावों के बावजूद रूस का उस तरह से विरोध नहीं कर पा रहे हैं, जैसा कि वे दिखा रहे हैं। अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद भारत व चीन सहित अनेक यूरोपीय देशों ने भी रूस से तेल खरीदना नहीं छोड़ा है। भारत तो अब सर्वाधिक तेल रूस से ही खरीद रहा है। अब आप सोच रहे होंगे कि कि रूस का विरोध करने से यूरोपीय देशों के हिचकिचाने की क्या वजह है? कहीं सस्ते तेल की वजह से तो ये देश रूस का विरोध नहीं कर पा रहे हैं? यह सोचना कुछ हद तक सही है, लेकिन इसकी बड़ी वजह सिर्फ सस्ता तेल ही नहीं हैं। महंगाई का सामना कर रहे यूरोप के सामने रूस से सस्ता तेल लेना मजबूरी हो सकती है, लेकिन उनकी एक और मजबूरी है। सस्ते तेल को तो वे एक बार छोड़ भी सकते हैं, लेकिन उनके तमाम नाभिकीय संयंत्र भी रूस के ही भरोसे चल रहे हैं और अगर रूस में उनको नाभिकीय कलपुर्जों व अन्य जरूरी सामान की आपूर्ति बंद कर दी तो इन देशों के सामने बिजली का गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा। इसीलिए यूरोपीय देश रूस का विरोध वहीं तक कर सकते हैं, जहां तक रूस नाराज नहीं होता।
असल में रूस अपनी नाभिकीय पॉवर कंपनी रोस्टम के जरिये पूरी दुनिया को नाभिकीय ऊर्जा के लिए जरूरी सामान की आपूर्ति करता है। वह यूरोप को यूरेनियम का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। यूरोपीय यूनियन के पांच देशों के सभी 18 रिएक्टर रूस ने ही बनाए हैं। इसके अलावा स्लोवाकिया में दो और रिएक्टर जल्द शुरू होने वाले हैं व हंगरी में दो का निर्माण चल रहा है। सालों से इन देशों के पास अपने रिएक्टरों में ईंधन यानी यूरेनियम की रॉड के लिए रोस्टम की सहायक कंपनी टीवीईल ही एक मात्र जरिया है। हालांकि, पिछले साल फरवरी में रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद से यूरोप के देश नाभिकीय रिएक्टर के लिए रूस से दूरी बना रहे हैं, लेकिन मौजूदा रिएक्टरों के संचालन के लिए रोस्टम की आपूर्ति बाध्यकारी है। मौके को देखकर अमेरिकी और फ्रांसीसी कंपनियां रोस्टम का स्थान लेने की जुगत में जुट गई हैं, लेकिन रूस जिस तरह से डॉलर की जगह अब अनेक देशों के साथ उनकी मुद्रा में व्यापार कर रहा है, उससे रूस के प्रस्ताव किसी भी देश के लिए हमेशा आकर्षक सौदा रहेगा।
क्रीमिया पर रूस के हमले के बाद 2014 में यूक्रेन ने भी अपनी नाभिकीय ऊर्जा की जरूरत के लिए रूस पर निर्भर रहने की बजाय अमेरिकी कंपनी वाशिंगटन हाउस के साथ समझौता किया था। सोवियत युग के यूक्रेन के 15 रिएक्टरों का डिजाइन बदलकर उन्हें अमेरिकी तकनीक के अनुरूप बनाने में वाशिंगटन हाउस के पांच साल का समय लगा। यूरोपीय देश अगर अब रूस पर से नाभिकीय निर्भरता कम करना चाहते हैं तो भी उन्हें कम से कम पांच साल तक तो रूस पर निर्भर रहना ही होगा। यूक्रेन ने वाशिंगटन हाउस के साथ अपने नाभिकीय ईंधन की आपूर्ति का समझौता करने के साथ ही नौ ऊर्जा संयंत्र लगाने का भी सौदा किया है। यही वजह है कि यूक्रेन की रूस से दूरी बढ़ती गई और अमेरिका के करीब होती गई। अब सवाल यह भी है कि रूसी हमलों से बर्वाद हो चुके यूक्रेन इन महंगे सौदों को जारी भी रख पाएगा या नहीं। वहीं नए रिएक्टर लगाने का सौदा बहुत महंगा और समय लेने वाला है, ऐसे में जिन देशों के पास मौजूदा रूसी रिएक्टर हैं, वे रूस से दूरी बनाने का जोखिम लेंगे या नहीं यह सवाल भविष्य के गर्त में हैं। खासकर ऐसे समय पर जब पूरा यूरोप महंगाई और बेरोजगारी की समस्या का सामना कर रहा है। वहीं नाभिकीय साजो सामान की आपूर्ति के लिए रूस की कंपनी में इन देशों का भरोसा बना हुआ है और वह उनके लिए किफायती सौदा भी है।