नई संसद का उद्घाटन और विपक्ष की एकजुटता की चौंकाने वाली हकीकत जानें
देश की नई संसद का रविवार 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उद्घाटन करेंगे। अत्याधुनिक सुविधाओं व अधिक सीटों वाली इस संसद का डिजाइन अत्यंत ही आकर्षक है। इस संसद को सरकार ने रिकॉर्ड समय में तैयार किया है। 2026 में परिसीमन के बाद लोकसभा व राज्य सभा की सीटें बढ़ना तय है, इसलिए नया संसद भवन बनाना वक्त की जरूरत था। लेकिन, जब यह ऐतिहासिक भवन बन गया है तो रूठे हुए फूफा की तरह कांग्रेस सहित 21 विपक्षी दलों ने संसद भवन के उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार करने की घोषणा की है, इसका मकसद एक तरह से विपक्षी एकता का प्रदर्शन करना है। असल में इस समय कई मोर्चों पर विपक्षी एक जुटता का ड्रामा चल रहा है। अाप कहेंगे कि हम सरकार समर्थक हैं, इसलिए विपक्ष की एकजुटता को ड्रामा कह रहे हैं। चलिए हम साबित करते हैं कि हमने ड्रामा शब्द का इस्तेमाल क्यों किया।
Inside visuals of the new Parliament building ahead of its inauguration by PM Modi on May 28. pic.twitter.com/cUN9xdZ5sv
— Press Trust of India (@PTI_News) May 26, 2023
अगर विपक्ष एकजुट है तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव और दिसंबर में होने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव में इस एकजुटता का प्रदर्शन होना ही चाहिए। एकजुटता यानी जो तेरा है वो मेरा है और जो मेरा है वो तेरा है। चलिए शुरुआत आम आदमी पार्टी से करते हैं, क्योंकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इस समय केंद्र के खिलाफ सबसे मुखर हैं। केजरीवाल पूर्व में जिन लोगों को गालियां दे चुके हैं, आज वे उनके पास मदद के लिए जा रहें हैं। उन्होंने राहुल गांधी, सोनिया गांधी, शरद पवार, लालू यादव, उद्धव ठाकरे, करुणानिधि से लेकर ममता बनर्जी तक को पूर्व में जमकर कोसा है। अब वे उनसे मदद मांगकर विपक्षी एकजुटता का प्रदर्शन कर रहे हैं। अगर विपक्ष एकजुट है तो क्या केजरीवाल अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दिल्ली की सात में से चार सीटों पर चुनाव लड़ने देंगे? बिल्कुल नहीं। क्या वे लोकसभा चुनाव में पंजाब की उन सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े नहीं करेंगे, जहां से अभी कांग्रेस के सांसद हैं? बिल्कुल नहीं। क्योंकि संसद में पहुंचने के लिए केजरीवाल की उम्मीद इन्हीं दो राज्यों पर है। आगे चलते हैं, इसका उल्टा करते हैं क्या कांग्रेस पंजाब में अपनी जीती 10 सीटों में से कुछ पर आम आदमी पार्टी से समझौता करेगी? इसका जवाब भी बिल्कुल नहीं है। ऐसे ही क्या कर्नाटक में कांग्रेस लोकसभा की कुछ सीटें जेडीएस के लिए छोड़ेगी? क्या ममता बंगाल में कुछ सीटें कांग्रेस अथवा वामदलों को देंगी? क्या नीतीश और तेजस्वी यादव बिहार में ममता के लिए कुछ सीटें छोड़ेंगे? क्या अखिलेश व मायावती कांग्रेस के लिए यूपी में सीटें छोड़ेंगे। क्या कांग्रेस राजस्थान, मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी के लिए विधानसभा व लोकसभा चुनाव में सीटें छोड़ेगी? क्या स्टॉलिन और के. चंद्रशेखर राव आम आदमी पार्टी के लिए सीटें छोड़ेंगे? इस सभी सवालों का जवाब भी बिल्कुल नहीं है। असल में विपक्षी दलों के प्रांतीय छत्रप अपने राज्य में कोई समझौता ही नहीं चाहते हैं। वैसे ही कांग्रेस की जिन राज्यों में सरकार है, वह भी वहां कोई समझौता नहीं करेगी। ऐसे में अगर देखा जाए तो विपक्षी एकता एक दिखावा भर है। यही वजह है कि हमने इसे ड्रामा कहा। मोदी और भाजपा भी यह तथ्य अच्छी तरह से जानते हैं, इसलिए विपक्षी एकता की कथित कोशिशें उन्हें जरा भी विचलित नहीं करती हैं।
आगे देखिए, जिन नीतीश कुमार के पास लगभग ना के बराबर सांसद हैं, वे प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश पाले हुए हैं। केजरीवाल भी इस दौड़ के दूसरे सदस्य हैं। राहुल के चुनाव लड़ने पर भी संदेह है, लेकिन वे भी इस दौड़ में आगे हैं। जब हालात ऐसे हों तो विपक्ष संसद के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करके क्या हासिल करना चाहता है? मोदी 28 मई को संसद का उद्घाटन कर ही देंगे, क्या इन 21 दलों न होने से कोई फर्ख पड़ेगा। बेहतर होता कि विपक्षी एकजुटता का ड्रामा किसी और मौके पर कर लेते, लेकिन सच तो यह है कि जब ड्रामा ही करना है तो क्या मौका और क्या दस्तूर?