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हरियाणा भाजपा की बेचैनी और गठबंधन में उभरती दरारें

कर्नाटक के चुनाव परिणाम के बाद भाजपा शासित जिस राज्य में सर्वाधिक बेचैनी नजर आ रही है, वह हरियाणा है। हरियाणा के भाजपा कार्यकर्ता इस समय निराश हैं। उनकी निराशा राज्य की सरकार के साथ ही प्रदेश संगठन को लेकर भी है। वहीं सरकार की सत्ता में भागीदार जेजेपी के साथ जिस तरह से दूरियां बढ़ती नजर आ रही हैं, उसने भी हालात को खराब ही किया है। असल में पिछले दिनों मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सभी जिलों में जनसंवाद कार्यक्रमों का आयोजन किया। इस कार्यक्रमों में उन्हें जनता के मन की बात जानने का मौका तो मिला, लेकिन आलोचना न सुन पाने के आदी और गुस्से पर नियंत्रण न रख पाने की वजह से इन कार्यक्रमों से जो हासिल होना चाहिए था वह नहीं मिल सका। असल में तो इनसे लोगों की नाराजगी और भी बढ़ गई, साथ ही साफ हो गया कि मुख्यमंत्री की लोकप्रियता में भारी गिरावट आई है।

अब प्रदेश भाजपा प्रभारी और त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री विप्लव देव राज्य के दौरे पर हैं। विप्लब देव हर लोकसभा क्षेत्र में जाकर कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं। हाल ही में जब वह हिसार लोकसभा क्षेत्र के दौरे पर थे तो उनसे उचाना विधानसभा चुनाव हल्के में भविष्य में भाजपा के उम्मीदवार को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने दो टूक कह दिया कि इस हल्के में भाजपा उम्मीदवार रहीं प्रेमलता का व्यापक प्रभाव है और स्पष्ट कर दिया कि अगले चुनाव में वह यहां से उम्मीदवार होंगी। आपको बता दें कि प्रेमलता पूर्व केंद्रीय मंत्री बिरेंद्र सिंह की पत्नी और हिसार के सांसद ब्रिजेंद्र सिंह की माता है। अब आप सोच रहे होंगे कि विप्लव देव ने ऐसा क्या कह दिया, जिससे गठबंधन में समस्या उत्पन्न हो गई। तो हम आपको बताते हैं कि उचाना से जजपा नेता व राज्य के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला विधायक हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने प्रेमलता को हराया था, जबकि 2014 में वह प्रेमलता से चुनाव हार गए थे। उचाना एक जाट बहुल सीट है और 2014 में दुष्यंत को हिसार लोकसभा सीट से विजय दिलाने में इस सीट की अहम भूमिका थी। आपको यह भी बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में दुष्यंत हिसार लोकसभा का चुनाव ब्रिजेंद्र सिंह से हार चुके हैं।

अगर देखा जाए तो उचाना का मुद्दा तो एक संकेत भर है, क्योंकि अगले साल पहले लोकसभा और उसके बाद विधान सभा का चुनाव होना है। भाजपा और जजपा के बीच अनेक सीटों को लेकर घमासान मचना तय है और ऐसे में गठबंधन के भविष्य को लेकर सवाल अभी से उठने लगे हैं। दूसरी अहम बात, राज्य का जाट मतदाता भाजपा से बहुत नाराज है। हिसार जिले की आदमपुर विधासभा सीट पर जिस तरह से जाटों ने एकजुट होकर कांग्रेस के उम्मीदवार जयप्रकाश के पक्ष में वोट किया, उससे साफ हो गया है कि जाट इस चुनाव में भी अपने वोट को खराब करने की बजाय किसी एक ही दल या गठबंधन को वोट देंगे, जहां से उन्हें लगता हो कि एक बार फिर राज्य में जाटों की चौधर वापस आएगी। ऐसे में कांग्रेस उनकी पहली पसंद और इनलो दूसरी पसंद होगी। पिछले चुनाव में जाट वोट जहां सिरसा, हिसार और भिवानी बेल्ट में जजपा के पक्ष में गए, वहीं रोहतक और जीटी रोड बेल्ट में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पक्ष में रहे। इस चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला भी पूरी तरह से सक्रिय हैं और उनकी पार्टी इनेलो अभय सिंह चौटाला के नेतृत्व में पूरे हरियाणा में यात्रा निकाल रही है, जिसे अच्छा समर्थन भी मिल रहा है। यही वजह है कि जाट समाज के लोगा चाहते हैं कि हुड्डा और चौटाला के बीच अगर अगले चुनाव में किसी तरह की सहमति बनती है तो उनके लिए भाजपा को हराना आसान हो सकता है। भाजपा के साथ जाने की वजह से इस बार जजपा जाटों की पसंद बनेगी, इसमें शक है। वहीं गैर जाट जजपा पर किसी तरह का भरोसा नहीं करेंगे।

अब बात करते हैं भाजपा की। पिछले करीब साढ़े आठ साल से मुख्यमंत्री के पद पर बैठे खट्टर लगातार अलोकप्रिय हो रहे हैं। भाजपा का अंदरूनी सर्वे भी बता रहा है कि खट्टर के नेतृत्व में अगला चुनाव नहीं जीता जा सकता। खट्टर को लेकर भाजपा के कार्यकर्ता बहुत नाराज हैं। पार्टी की रीढ़ कहे जाने वाले अनेक पन्ना प्रमुख जिस तरह से निष्क्रिय बैठे हैं, उससे पार्टी की चिंता बढ़ रही। इसके उलट मुख्यमंत्री खुद इससे बेफिक्र हैं। विप्लव देव को राज्य के दौरे के बाद इस हकीकत का पता तो लग ही जाएगा, लेकिन अगर वे भाजपा हाईकमान को कोई ठोस कार्ययोजना नहीं दे सके तो हालात और खराब भी हो सकते हैं। लोकसभा चुनाव के लिए साल भर से भी कम समय रह गया है और भाजपा को हर हाल में हवा को अपने पक्ष में करना होगा। आज राज्य को युवा नेतृत्व की जरूरत है, जो दौड़भाग करने के साथ ही भविष्य की कार्ययोजना पर भी काम कर सके। जहां तक खट्टर का सवाल है तो वे भविष्य के नेता नहीं हैं और अगर एक बार सत्ता से बाहर होते हैं तो वह दोबारा सत्ता पाने की कोशिश भी करेंगे, इसमें शक है। इसीलिए भाजपा को सबसे पहले आने कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के लिए विधासभा चुनाव से पहले दायित्वों का बंटवारा करके उन्हें निगमों और बोर्डों में तैनात करना होगा। साथ ही ऐसे नेता को आगे लाना होगा, जो अगले 20-25 साल तक पार्टी को आगे ले जाने में सक्षम हो। इस समय भाजपा के सभी पुराने नेता मार्गदर्शकमंडल में जाने की उम्र के करीब पहुंच चुके हैं और अगर पार्टी ने अभी कोई कदम नहीं उठाया तो उसे आगे और कठिन हालात का सामना करना पड़ सकता है।

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