
हमारा हिमालय तमाम तरह की दुर्लभ औषधियों से भरा पड़ा है। लेकिन, अनेक ऐसे औषधीय पौधे हैं, जो हमें अनेक प्रकार से चौंकाते हैं। इनमें जहां कुछ पौधे अत्यंत सुदर होते हैं, तो किसी के फूल बहुत सुंदर होते है, किसी की खुशबू बहुत अच्छी होती है। इसके विपरीत कुछ पौधे अत्यंत कुरूप अथवा बदबू छोड़ने वाले होते हैं। ऐसा ही चौंकाने वाला पौधा है सिक्किम रुबर्ब या पद्माचल। इसका बॉटनीकल नाम Rheum nobile है। कई जगहों पर इसे डोलू या रेवंड चीनी भी कहा जाता है। भारत के अलावा यह पौधा अफगानिस्तान से लेकर भूटान, तिब्बत और म्यांमार में भी मिलता है। 4000 से 4800 मीटर की ऊंचाई पर मिलने वाला यह पौधा अपने आकार और खूबसूरती के साथ औषधीय गुणों के लिए जाना जाता है। सिक्किम रुबर्ब करीब दो मीटर तक ऊंचा होता है। यह एक ऐसा पौधा है, जो अपने आसपास पनपने वाले पौधों के लिए एक ग्लास हाउस का काम करता है। असल में सिक्किम रुबर्ब की पत्तियां ऐसी होती हैं, जिनके आरपार प्रकाश पार हो सकता है। इसलिए ये अपने आसपास के पौधों के लिए ग्रीनहाउस प्रभाव का काम करती हैं। ये पत्तियां जहां पराबैंगनी या अल्ट्रावायलेट विकिरण को रोकती हैं, वहीं भीषण सर्दी में आसपास के पौधों के लिए परदों का भी काम करती हैं।
सिक्किम रुबर्ब का पौधा शंकु के आकार का होता है। यह जैसे बढ़ता है इसके पत्ते नीचे से खुलना शुरू होते हैं और हरे रंग के हो जाते हैं। नए निकलने वाले पत्ते भूरे रंग के होते हैं, हालांकि, इसकी कोंपल गुलाबी व हल्की पीली होती हैं। प्रकाश के प्रभाव से ये अलग रंग का होने का आभास भी देती हैं। अगर आप इसकी हरी पत्तियों को उठाएंगे तो उनके नीचे आपके इसके रंगबिरंगे फूलों के गुच्छे भी दिखाई देंगे। इस पौधे पर फूल जून और जुलाई में आते हैं। सितंबर अक्टूबर में इस पर छोटे-छोटे पल आ जाते हैं। असम में इस पौधे के पत्तों की सब्जी बनाई जाती है। इसकी जड़ का इस्तेमाल कब्ज, कम पाचन और पीलिया के मामलों में दवा के रूप में किया जाता है। इसके पत्तों का स्वाद जहां हल्का खट्टा होता है, वहीं इसकी जड़ व तना कड़वा होता है।