लोकरंग

पुरी की रथयात्रा शुरू, क्या आप भगवान के रथों की खासियत जानते हैं?

पुरी की विश्‍व प्रसिद्ध जगन्‍नाथ रथयात्रा मंगलवार 20 जून से शुरू हो गई है और यह 28 जून को समाप्‍त होगी। लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में हिस्‍सा ले रहे हैं। मंत्रोच्‍चार के बीच लोग भगवान जगन्‍नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के दर्शन कर रहे हैं। सुबह मंगल अारती और खिचड़ी भोग के बाद जगन्‍नाथ मंदिर से सुदर्शन चक्र के साथ तीनों मूर्तियां तीन पवित्र रथों पर सवार हुईं। जहां से वे गुंडिचा मंदिर पहुंचेंगी और एक सप्‍ताह तक वहीं रहेंगी। गुंडिचा भगवान की मौसी हैं। एक सप्‍ताह बाद वहां से उनकी जगन्‍नाथ मंदिर में वापसी होगी। लोकरंग की इस कड़ी में हम आपको इस यात्रा से जुड़ी रोचक परंपराओं और रीतिरिवाजों के बारे में बताएंगे। स्‍कंद पुराण के मुताबिक 12 यात्राओं में जगन्‍नाथ या गुंडिचा यात्रा सबसे अधिक प्रसिद्ध है। बामदेव संहिता के मुताबिक जो भी गुंडिचा मंदिर में सिंहासन पर विराजमान भगवान जगन्‍नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा के साथ श्री सुदर्शन के सात दिन तक दर्शन करता है, तो उसे व उसके पूर्वजों को आने वाले समय में बैकुंठ में स्‍थान मिलता है। भगवान के रथ को संधिनी शक्‍ति का प्रतीक माना जाता है और इसे छूने मात्र से भगवान जगन्‍नाथ की कृपा प्राप्‍त होती है।

हर साल बनते हैं नए रथ

भगवान जगन्‍नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की यात्रा जिन रथों में निकलती हैं, वे हर साल नए बनते हैं। इसके लिए नारियल की खास लकड़ी का इस्‍तेमाल होता है। इन लकड़ियों को दासपल्‍ला से लाया जाता है और विशेष कारीगर इनका निर्माण करते हैं। यही नहीं इन रथों को बनाने में किसी भी तरह की धातु का इस्‍तेमाल नहीं होता है। आपको बता दें कि जगन्‍नाथ मंदिर में भगवान की मूर्तियां भी लकड़ी की बनी होती हैं। भगवान की मूर्ति बनाने के लिए नीम की लकड़ी का इस्‍तेमाल होता है। भगवान जगन्‍नाथ का रंग श्‍याम है, इसलिए उनकी मूर्ति के लिए अत्‍यंत पुरानी पुरानी और गहरे रंग की नीम की लकड़ी का इस्‍तेमाल होता है। भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां हल्‍के रंग की लकड़ी से बनती हैं। रथ यात्रा में भगवान जगन्‍नाथ का रथ सबसे बड़ा होता है और वह सबसे पीछे चलता है। बहन सुभद्रा का रथ सबसे छोटा होता है और वह सबसे आगे होता है, बीच में भाई बलभद्र का रथ होता है।

हम आपको इन तीनों रथ्‍ाों की कुछ खास बातों से परिचित कराते हैं। हर रथ के चारों ओर नौ पार्श्‍व देवताओं की लकड़ी पर बनी पेंटिंग होती हैं। भगवान जगन्‍नाथ के रथ का नाम नंदीघोष है। इसे गरुड़ध्‍वज या कपिध्‍वज भी कहा जाता है। इसमें 16 पहिए होते हैं और इसकी ऊंचाई 44 फीट दो इंच होती है। इसका रंग लाल और पीला होता है। भगवान बलभद्र के रथ का नाम तलध्‍वज है। इसमें 14 पहिए होते हैं और इसकी ऊंचाई 43 फीट 3 इंच होती है। इसका रंग लाल और हरा होता है। देवी सुभद्रा के रथ का नाम दर्पडालन या पद्मध्‍वज है। इसमे 12 पहिए होते हैं और इसकी ऊंचाई 42 फीट तीन इंच होती है। इसका रंग लाल और काला होता है।

आज भगवान जगन्‍नाथ की रथ यात्रा इतनी प्रसिद्ध हो गई है कि दुनिया के अनेक देशों में इसका आयोजन होता है। इस्‍कॉन के संस्‍थापक भक्‍तिवेदांत स्‍वामी प्रभुपाद ने दुनिया के अनेक देशों में इस यात्रा को प्रसिद्धि दिलाई। भारत के भी तमाम बड़े शहरों में अब हर साल भगवान जगन्‍नाथ की रथयात्रा का आयोजन होने लगा है।

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