अब मुर्गा मारे बिना भी खाया जा सकता है चिकन
अगर आप चिकन के शौकीन हैं, लेकिन जीव हत्या की वजह से इससे परहेज करते हैं तो अब आपके लिए प्रयोगशाला में बना चिकन उपलब्ध है। क्योंकि प्रयोगशाला में बना यह चिकन स्वाद व दिखने में एकदम असली चिकन की ही तरह होता है, लेकिन इसके लिए किसी भी मुर्गे की हत्या नहीं की जाती। इसे चिकन की सेल्स से प्रयोगशालाओं में तैयार किया जाता है। सिंगापुर के कुछ होटलों में तो इसे 2020 से परोसा भी जा रहा है। सिंगापुर दुनिया का पहला देश है, जिसने लैब में बने चिकन को परोसने की मंजूरी दी है। हाल ही में अमेरिका ऐसी अनुमति देने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया है।
सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि लैब यानी प्रयोगशाला में इस मीट को कैसे बनाया जाता है। वैज्ञानिक भाषा में इस मीट को कल्चर्ड मीट कहते हैं। किसी भी सेल्स यानी ऊतकों को लेकर उन्हें प्रयोगशाला में सीमित वातावरण में कई गुना बढ़ाया जाता है। इस विधि को सेलुलर एग्रीकल्चर का नाम दिया गया है। इस विधि से सिर्फ मांस ही नहीं, खाने पीने की अन्य चीजों को भी उनके प्राकृितक तरीके की बजाय प्रयोगशाला में ही तैयार किया जा सकता है। इस तकनीक को जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने की बड़ी वजह के रूप में देखा जा रहा है। इसे नई कृषि का नाम भी दिया गया है, क्योंकि इससे पर्यावरण पर मीट के उत्पादन से होने वाला दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। यही नहीं इस तकनीक को भविष्य में खाद्य सुरक्षा के बड़े विकल्प के रूप में भी देखा जा रहा है। 2013 में एक डच फार्मासिस्ट मार्क पोस्ट ने पहली बार किसी पशु के शरीर से बाहर बनाए गए मीट से हैमबर्गर में डाली जाने वाली पैटी तैयार की। इसके बाद से इस पर लगातार प्रयोग होने लगे और अनेक जगहों पर इस तरह का मीट तैयार होने लगा। इस्राइल की राजधानी तेलअवीव में सुपरमीट कंपनी ने द चिकन नाम से एक रेस्टोरेंट खोला और अपने लैब चिकन से बने बर्गर पर ग्राहकों की प्रतिक्रिया जानी। जबकि, लैब में बने मीट का पहला व्यावसायिक इस्तेमाल था 2020 में सिंगापुर के रेस्टोरेंट 1880 में किया गया। लैब में बने मीट पर लगातार शोध जारी है और ग्राहकों की जेब के मुताबिक बनाने पर काम जारी है। इस काम में अमेरिका, यूरोप और इस्राइल की अनेक कंपनियां लगी हुई हैं। इस वध रहित मीट के आलोचक भी हैं, वे इसकी अधिक कीमत और सीमित उपलब्धता को लेकर सवाल उठाते हैं।