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एवरेस्ट की कितनी बर्फ पिघली 30 साल में, 2100 तक हिमालय पर कितनी रह जाएगी बर्फ?

ग्लोबल वार्मिंग यानी जलवायु परिवर्तन, यह विषय हममें से अधिकतर को अत्‍यंत उबाऊ सा लगता है। अगर हम लोगों से पूछें तो वे यही कहेंगे कि यह शायद ही कभी हमारी आम चर्चा का विषय बनता हो। लेकिन, ऐसा नहीं है, हम इस पर लगातार चर्चा करते हैं, लेकिन हमने जलवायु परिवर्तन के रूप में शायद इस पर चर्चा नहीं की। इस साल उत्‍तर भारत में मई में गर्मी नहीं पड़ी, पहाड़ी क्षेत्रों में तो कई बार सर्दी जैसे हालात बन गए, हम सभी ने इस पर चर्चा की और यह जलवायु परिवर्तन का ही तो असर है। उत्‍तर प्रदेश में कई जगहों पर गर्मी से दर्जनों लोगों की मौत हो गई, तूफान विपर्यय ने भारी तबाही मचाई। हर साल एक-दो तूफान भारत की धरती से टकरा रहे हैं। पहले खतरा सिर्फ समुद्री इलाकों को था, लेकिन इस बार राजस्‍थान में विपर्यय ने अच्‍छी खासी तबाही मचाई और कई लोगों की जान ले ली। रेगिस्‍तानी इलाकों में देश के अन्‍य इलाकों से अधिक बारिश हो रही है। इस बार मई में अत्‍यधिक ठंड होने वजह से कई फलों और सब्‍जियों के उत्‍पादन में भारी गिरावट आई है। हम सब इसे देख रहे हैं। यह तो बस शुरुआत है, आगे और भी असंगत बातें होने वाली हैं। सबसे बड़ा खतरा तो उन देशों,  राज्‍यों और इलाकों को है, जो हिमालय से सटे हैं और जहां से हिमालय से निकलने वाली नदियां गुजरती हैं। क्‍योंकि एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगले 75 सालों यानी 2100 तक हिंदु कुश हिमालय के ग्‍लेशियर अपनी 75 फीसदी बर्फ खो देंगे, यानी आज यहां पर जितनी बर्फ है, उसमें से 75 फीसदी पिघल जाएगी। यह इस इलाके के दो अरब से अधिक लोगों के लिए बड़ा खतरा पैदा कर देगा, क्‍योंकि ऐसा होने पर भीषण बाढ़ तो आएगी ही, कई जगहों पर जल संकट भी खड़ा हो जाएगा।

अंतरराष्‍ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस इलाके में स्‍थित एवरेस्‍ट और के2 जैसी प्रसिद्ध चोटियों पर हो रही हिमक्षति का अध्‍ययन करने के बाद बताया कि यहां पर हिमक्षति लगातार बढ़ रही है। नेपाल की राजधानी काठमांडो में स्‍थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट ने पाया कि 2010 से यहां पर मौजूद ग्‍लेशियर एक दशक पहले की तुलना में 65 फीसदी अधिक तेजी से हिमस्‍खलन कर रहे हैं। केंद्र ने चेताया है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्‍सर्जन रोकने के लिए जल्‍द कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले सालों में  स्‍थिति भयावह हो सकती है और एवलांच व बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है। इससे हिमालय क्षेत्र में रहने वाले 25 करोड़ और यहां से निकलने वाली 12 नदियों से सटे इलाकों में रहने वाले पौने दो अरब लोगों के सामने जल संकट भी पैदा हो सकता है।

इस रिपोर्ट को पेश करने वाली एक वैज्ञानिक ने कटाक्ष किया इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कुछ भी नहीं किया है और इसीलिए अब उन्‍हें ही सर्वाधिक खतरा है। वे कहती हैं कि आज जो थोड़ा-बहुत हो रहा है, वह नाकाफी है और बड़े प्रयासों के बिना इस खतरे का सामना करना मुश्‍किल है। आपको बता दें कि पहले की रिपोर्टों में बताया गया है कि बर्फ से ढके रहने वाला पृथ्वी का क्रायोस्‍फेयर क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित हुआ है। हाल की रिसर्च में पता चला है कि माउंट एवरेस्‍ट ने 2000 सालों की बर्फ को सिर्फ तीस सालों में ही गंवा दिया है। वैज्ञानिकों ने बताया कि उन्‍होंने क्रायोस्‍फेयर क्षेत्र को हो रहे नुकसान से जल, ईको सिस्‍टम और समाज पर होने वाले प्रभाव का पहली बार अध्‍ययन किया है।

हिंदुकुश हिमालय 3500 किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और यह अफगानिस्‍तान, भारत, चीन, पाकिस्‍तान, बांग्‍लादेश, भूटान, नेपाल और म्‍यांमार तक है। वैज्ञानिक लगातार यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं, कि ग्‍लोबल वार्मिंग का हिमालय पर कैसा असर पड़ रहा है। यहां ग्‍लेशियर बढ़ रहे हैं या घट रहे हैं। 2019 में अमेरिका ने जासूसी सेटेलाइट द्वारा इस इलाके की 1970 में ली गई तस्‍वीरों को जारी किया था। वैज्ञानिक अब उनको अाधार मानकर ही अपने शोध कर रहे हैं।

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