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उच्चतम स्तर पर पहुंचा दुनिया का औसत तापमान

देश के अनेक इलाकों में इस समय मानसून की भारी बारिश हो रही है। इस बार देर से आने के बावजूद मानसून तय समय से पांच दिन पहले ही पूरे भारत में सक्रिय हो गया। वहीं देश के अनेक हिस्‍सों में भीषण गर्मी भी पड़ रही है। यूरोप सहित पूरी दुनिया के अनेक देश भीषण गर्मी से जूझ रहे हैं। कई देशों में अल नीनो को इसकी वजह माना जा रहा है। क्‍या आपको पता है कि दुनिया में अब तक का सर्वाधिक औसत तापमान क्‍या है? किस दिन दुनिया का औसत तापमान सर्वाधिक रहा? हम आपको बताते हैं कि पृथ्‍वी का औसत तापमान 15 डिग्री सेल्‍सियस यानी 59 डिग्री फारेनहाइट होता है। लेकिन दो दिन पहले यानी 3 जुलाई को दुनिया का औसत तापमान 17.01 डिग्री से. यानी 62.62 डिग्री फारेनहाइट पर पहुंच गया। यह पृथ्‍वी का अब तक का सर्वाधिक औसत तापमान है। इसे पहले पृथ्‍वी का सर्वाधिक औसत तापमान अगस्‍त 2016 में 16.92 डिग्री सेल्‍सियस यानी 64.46 डिग्री फारेनहाइट था।

अब आप सोच रहे होंगे कि एक-दो डिग्री औसत तापमान बढ़ने से क्‍या हो सकता है? यह तो बहुत ही मामूली तापमान है। लेकिन, हम आपको बता दें कि अगर पृथ्‍वी का औसत तापमान इसी तरह बढ़ता रहा तो ध्रुवों पर जमा बर्फ पिघलने की दर तेज हो जाएगी, जिससे समुद्र का जल स्‍तर बढ़ सकता है। यही नहीं तापमान बढ़ने का सीधा मतलब होगा, दुनिया में भयंकर जलवायु परिवर्तन। जिससे बड़े-बड़े तूफान आएंगे, दुनिया में बाढ़ के हालात पैदा होंगे, तेज गर्म हवाएं चलेंगी और अनेक जगहों पर सूखा पड़ेगा। यही नहीं वनाग्‍नि की घटनाओं में भी तेजी आना तय है।

इस समय दक्षिणी अमेरिका में भीषण गर्मी पड़ रही है। चीन में भी लू चल रही है। उत्‍तरी अफ्रीका का तापमान 50 डिग्री से अधिक बना हुआ है। और तो और अंटार्कटिका में तक इन सर्दियों में तापमान अधिक रहा है। आपको बता दें कि पृथ्‍वी का औसत तापमान बढ़ना कोई ऐसा मौका नहीं है, जिसका उत्‍सव मनाया जाए, बल्‍कि यह गंभीर चिंता का विषय है। अगर हम अपने आसपास देखेंगे तो पाएंगे कि मौसम को लेकर कुछ न कुछ असामान्‍य तो हो रहा है। हम जितनी जल्‍दी इस बदलाव को पहचान लेंगे और इसे ठीक करने के उपाय तलाशने लगेंगे, वह उचित होगा। इस साल कनाडा में लगी आग से पूरे न्‍यूयॉर्क में धुआं फैला रहा। दिल्‍ली में हर साल सर्दी से ठीक पहले छाने वाला स्‍मोग भी चिंता का विषय है।

इसीलिए वैज्ञानिक पृथ्‍वी के तापमान में वृद्धि को लोगों और ईको सिस्‍टम यानी पर्यावरण की मौत का परवाना बता रहे हैं। उनका कहना है कि यह बदलाव अल नीनो और जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है। चीन व भारत दोनों ही जगहों पर एक तरफ लोग गर्मी से मर रहें हैं और दूसरी ओर बाढ़ की चपेट में आकर जान गंवा रहे हैं। यह समय सरकारों और जनता दोनों के लिए जागने का है। हमें कार्बन डाईऑक्‍साइड सहित तमाम ग्रीनहाउस गैसों का उत्‍सर्जन कम करने की जरूरत है। जिसके लिए हर स्‍तर पर प्रयासों की जरूरत है।

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