हरियाणा

भाजपा-जजपा साथ होते हुए भी साथ नहीं हैं या फिर साथ न होते हुए भी साथ हैं!

हरियाणा में सत्‍तारूढ़ भाजपा-जजपा गठबंधन सरकार एक अजीब मोड़ पर खड़ी। सरकार में तो ये दोनों दल साथ हैं, लेकिन दोनों ही दल लोकसभा चुनाव मिलकर न लड़ने की घोषणा कर चुके हैं। यह अजीब परिस्‍थिति है। ऐसा तो कई बार हुआ है कि किसी राज्‍य सरकार के साझीदार दल दूसरे राज्‍य में अलग-अलग चुनाव लड़ते हैं। उदाहरण के लिए जब महाराष्‍ट्र में भाजपा व शिवसेना का गठबंधन था तो भी बाकी राज्‍यों में दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़ते थे। इसकी वजह अन्‍य राज्‍यों में शिवसेना का बहुत ही कम प्रभाव होना था। ऐसा ही भाजपा व जदयू के साथ भी हुआ। कांग्रेस व राकांपा यानी एनसीपी के साथ भी ऐसा ही था। यह मामला पूरी तरह से समझ में आता है कि गठबंधन राज्‍यवार था और संबंधित राज्‍य में गठबंधन के दल मिलकर ही चुनाव लड़ते थे। अगर किसी को अलग लड़ना होता था तो वह गठबंधन से अलग होकर ही चुनाव लड़ता था।

अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आखिर हरियाणा में ऐसा क्‍या है, जो भाजपा और जजपा सरकार तो मिलकर चला रहे हैं, लेकिन चुनाव अलग-अलग लड़ रहे हैं? आइए थोड़ा पीछे चलते हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और जजपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। जजपा ने तो अपने मतदाताओं को मनोहरलाल खट्टर की सरकार से मुक्‍त कराने का सपना दिखाया था। लेकिन, चुनाव के बाद यही जजपा खुद खट्टर की गोद में बैठ गई। 2019 में प्रदेश की जाट पार्टी के रूप में पहचान रखने वाली इंडियन नेशनल लोकदल का विभाजन, इनेलो और जजपा के रूप में हो गया। दोनों ही दलों की कमान पूर्व मुख्‍यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के बेटों के हाथ में आ गई। इनेलो अभय चौटाला की हो गई और जजपा दुष्‍यंत चौटाला के जरिए अजय चौटाला की। उस समय ओमप्रकाश चौटाला और अजय दोनों ही जेल में थे। दुष्‍यंत पिता और दादा के साथ ही अपने पड़दादा चौधरी देवीलाल का नाम लेकर उनके कदमों पर चलने की बात करते थे। इसीलिए उन्‍होंने अपनी पार्टी का नाम भी जननायक चौधरी देवीलाल के नाम पर जननायक जनता पार्टी रखा। 2014 के चुनाव में इनेलो बुरी तरह से हार गई थी। खुद दुष्‍यंत उचाना में विधानसभा का चुनाव हार गए थे, हालांकि वह हिसार से लोकसभा के सांसद थे। इसीलिए 2019 में दक्षिण हरियाणा के जाटों ने इनेलो की बजाय जजपा को तरजीह दी और जजपा 11 सीटों पर चुनाव जीत गई। बाकी हरियाणा के जाट पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ चले गए।

आज की तस्‍वीर यह है कि चौधरी ओमप्रकाश चौटाला जेल से बाहर आ चुके हैं और उन्‍होंने अपनी पूरी ताकत अभय सिंह चौटाला को खड़ा करने के लिए लगा दी है। खुद अभय सिंह पूरे राज्‍य में यात्रा निकालकर लोगों से िमल रहे हैं। वह प्रदेश के हर गांव में पहुंच रहे हैं। खट्टर सरकार के साथ जाने की वजह से जजपा जाटों के बीच अपनी चमक खो चुकी है। उसके साथ जाटाें बहुत ही कम समर्थन रह गया है। गैर जाट मतदाता जजपा के साथ जाएगा नहीं। भाजपा इस बात को भलीभांति जानती है। उसको जजपा का साथ सिर्फ सरकार चलाने के लिए ही चाहिए। भाजपा को भी पता है कि जजपा का वोटर कभी उसके साथ नहीं आएगा, इसलिए उसके साथ मिलकर चुनाव लड़ना भाजपा के लिए नहीं, बल्‍कि सिर्फ जजपा को ही लाभ पहुंचा सकता है। इसके विपरीत अगर जजपा अलग से चुनाव लड़ती है तो इससे भाजपा को फायदा हो सकता है, क्‍योंकि जजपा उन जाट वोटों को काट सकती है, जो भाजपा के खिलाफ किसी और दल को मिल सकते थे। यही वजह है कि भाजपा-जजपा साथ होते हुए भी साथ नहीं हैं या फिर साथ न होते हुए भी साथ हैं।

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