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तीन साल तक रफी और लता ने साथ क्यों नहीं गाया, किस बात पर हुआ था दोनों का झगड़ा?

रफी को भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे महान गायक माना जाता है। 24 दिसंबर 1924 को पंजाब में अमृतसर के कोटला सुल्‍तान सिंह में पैदा हुए रफी का निधन 31 दिसंबर 1980 को हुआ था। मोहम्‍मद रफी की खूबी थी कि उन्‍होंने प्रेम गीतों से लेकर भजन, देशभक्‍ति, गजल, कव्‍वाली व विरह के गीतों को समान रूप से बेहतरीन अंदाज में गाया। वह परदे पर दिख रहे कलाकार के मुताबिक अपनी आवाज को ढाल लेते थे। उनकी मौत के 43 साल के बाद भी उनके गीत उतने ही लोकप्रिय हैं। उनकी पुण्‍यतिथि के मौके पर हम उनसे जुड़े कुछ रोचक किस्‍से आपको बताते हैं।

मोहम्‍मद रफी के बचपन का नाम फीको था। वह बचपन में अपने गांव की गलियों में घूमने वाले एक फकीर के गीतों को गाते थे। रफी का परिवार 1935 में लाहौर चला गया और वहां पर ही उन्‍होंने उस्‍ताद अब्‍दुल वाहिद खान, पंडित जीवनलाल मट्टू और फिरोज निजामी से शास्‍त्रीय संगीत सीखा। उन्‍होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से 13 साल की उम्र में महान गायक के.एल. सहगल के साथ लाहौर में गाया। पार्श्‍वगायक के तौर पर रफी ने पहली बार 1941 में जीनत बेगम के साथ पंजाबी फिल्‍म गुल बलोच के लिए युगल गीत गाया था। इसी साल लाहौर के ऑल इंडिया रेडियो ने उन्‍हें गाने के लिए आमंत्रित किया। उन्‍होंने पहली बार 1945 में हिंदी फिल्‍म गांव की गोरी के लिए गाया।

उनको छह फिल्‍म फेयर अवार्ड और एक बार राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार भी मिला। उन्‍हें 1967 में पद्मश्री दिया गया। रफी ने 4516 हिंदी गीत गाए। इसके अलावा 112 गीत अन्‍य भाषाओं में गाए। उन्‍होंने 328 निजी गीत भी गाए। हिंदी और पंजाबी के अलावा रफी ने कोंकणी, असमी, भोजपुरी, उड़िया, बंगाली, मराठी, सिंधी, कन्‍नड़, गुजराती, तमिल, तेलुगू, मगही और मैथिल भाषा में भी गीत गाए। उन्‍होंने अंग्रेजी, फारसी, अरबी व डच भाषा के गीत भी गाए।

1948 में महात्‍मा गांधी की हत्‍या के बाद रफी ने हंसूलाल भगतराम और राजेंद्र कृष्‍ण के साथ मिलकर रातोंरात सुनो सुनो ऐ दुनिया वालों, बापू की अमर कहानी गीत तैयार किया और गाया। उन्‍हें तब तत्‍कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने घर पर गाने के लिए आमंत्रित किया। उसी साल स्‍वतंत्रता दिवस पर उन्‍हें रजत पदक से सम्‍मानित किया गया।

1962-63 में रफी और स्‍वर कोकिला लता मंगेशकर के बीच गीतों की रॉयल्‍टी को लेकर विवाद हो गया। यह विवाद इतना बढ़ गया कि लता मंगेशकर ने मोहम्‍मद रफी के साथ गाने से ही इनकार कर दिया। करीब तीन साल तक रफी और लता ने साथ नहीं गाया। हालांकि, बाद में निर्देशक जयकिशन के हस्‍तक्षेप के बाद दोनों में समझौता हो गया। 25 सितंबर 2012 को लता ने टाइम्‍स ऑफ ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्‍यू में दावा किया कि रफी ने उनसे लिखित में माफी मांगी थी। इस दावे को रफी के बेटे शाहिद रफी ने गलत बताया था। लता और रफी के इस विवाद से ही पार्श्‍वगायिका सुमन कल्‍याणपुर को प्रसिद्धि मिली और उन्‍होंने रफी के साथ अनेक चर्चित गीत गाए। वहीं लता ने भी रफी की बजाय महेंद्र कपूरके साथ गाना शुरू किया और दोनों कई बेहतरीन गीत गाए।

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