हरियाणा में नूंह के दंगों ने राज्य सरकार व मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की प्रशासनिक विफलता को उजागर कर दिया है। खट्टर द्वारा यह कहना कि सरकार हर किसी को सुरक्षा नहीं दे सकती, साफ करता है कि वह अपनी भूमिका को लेकर कितने लापरवाह हैं। इस बयान से पार्टी के नेतृत्व की त्यौरियां चढ़ गई है। लोगों में भी इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है। कई लोगों ने तो खट्टर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से सीखने की सलाह दे डाली है। अनेक का कहना है कि अगर मुख्यमंत्री सबको सुरक्षा नहीं दे सकते तो उन्हें पद छोड़ देना चाहिए। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी इससे खासे नाराज हैं। यही नहीं इस मामले में प्रदेश के गृहमंत्री अनिल विज का गुप्तचर तंत्र भी पूरी तरह से विफल रहा। नूंह के हालात तो काफी पहले से विस्फोट हो गए थे, लेकिन प्रशासन कभी इसको भांप नहीं पाया। एक समय ऐसा था, जब मेवात को तथाकथित गंगा-जमुनी संस्कृति का प्रतीक माना जाता था। यहां के लोग भले ही मुसलमान थे, लेकिन उन्होंने अपने पूर्वजों की संस्कृति को भी कहीं न कहीं अपनाया हुआ था। गोतस्करी के धंधे और तब्लिगी जमात का प्रभाव पड़ने से इस पूरे क्षेत्र की संस्कृति ही बदल गई। इसी का परिणाम है कि नूंह में नियोजित तरीके से दंगे कराए गए। हर बार की तरह खट्टर सरकार का प्रशासनिक, पुलिस और गुप्तचर अमला हर मोर्चे पर विफल रहा।
खट्टर सरकार की ऐसी विफलता का यह पहला उदाहरण नहीं है। हिसार के बरवाला में जब कबीरपंथी संत रामपाल को हाईकोर्ट के आदेश पर गिरफ्तार करने का मामला था, तो भी खट्टर सरकार की नाकामी सामने आई। कई लोगों की मौत के बाद कलायत के तत्कालीन निर्दलीय विधायक और पूर्व कांग्रेसी नेता जयप्रकाश के दखल के बाद संत रामपाल का आत्मसमर्पण हुआ था। सरकार किसी भी तरह का अंदाजा लगाने में विफल रही थी। जाट आरक्षण आंदोलन में भी सरकार की विफलता पूरी तरह सामने आई। खट्टर सरकार के कारनामों की वजह से आज जाट समुदाय भाजपा से दूर हो चुका है। इसके बाद पंचकूला में बाबा राम रहीम की गिरफ्तारी से पहले सरकार ने जिस तरह से डेरा सच्चा सौदा के समर्थकों को जमा होने दिया, वह सरकार की प्रशासनिक विफलता को जाहिर करता है। यानी, जब भी कोई बड़ा मौका आया, खट्टर सरकार विफल ही रही।
बताया जाता है कि लोकसभा चुनाव से कुछ ही महीने पहले हुई इस घटना को भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने बहुत ही गंभीरता से लिया है। पार्टी को लगने लगा है कि खट्टर जिस तरह से हर मोर्चे पर विफल हो रहे हैं और उनकी लोकप्रियता लगातार गिर रही है, वह पार्टी के चुनावी अभियान के लिए ठीक नहीं है। मुख्यमंत्री के दंभी रवैये की शिकायत पहले भी पार्टी हाईकमान के पास पहुंच चुकी है। पिछले कुछ मौकों पर जब भी हरियाणा सरकार का नेतृत्व बदलने की बात हुई है, खट्टर ने गठबंधन सरकार के सहयोगी दुष्यंत चौटाला को आगे करके अपनी कुर्सी बचाई है। ऐसे हर मौके पर दुष्यंत गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात करके खट्टर को गठबंधन के लिए अनिवार्य बताकर उनकी कुर्सी बचा लेते थे। लेकिन, नूंह की घटना पर भाजपा और जजपा दोनों की ही राय अलग-अलग है। जजपा ने खुलकर धार्मिक यात्रा निकालने वाले हिंदू संगठनों को निशाने पर लिया है। यही नहीं कुछ माह पहले भाजपा के प्रदेश प्रभारी विप्लव देब पूरे राज्य का फीडबैक ले चुके हैं और उन्होंने हाईकमान को साफ बता दिया है कि सरकार जजपा के समर्थन वापस लेने के बाद भी चल सकती है।
यही वजह है कि भाजपा में हरियाणा सरकार को लेकर निर्णायक घड़ी पास आ गई है। लोकसभा के मानसून सत्र के बाद इस पर फैसला लगभग तय माना जा रहा है। पार्टी के सामने सबसे बड़ा सवाल यही है कि खट्टर नहीं तो कौन? पार्टी किसी भी बदलाव से पहले तमाम जातीय समीकरणों को भी साधने की कोशिश करेगी। हालांकि, हरियाणा में भाजपा की छवि एक गैरजाट पार्टी की है, इसलिए उसके गैरजाट वोटरों को इस बात से अधिक असर नहीं पड़ता की पार्टी का नेता किस वर्ग से है, बस वह गैरजाट होना चाहिए। अगर, देखा जाए तो पार्टी के लिए पंजाबी के अलावा वैश्य वर्ग को नेतृत्व देना सबसे अधिक फायदेमंद रहेगा, क्योंकि इसका असर हरियाणा से सटे राजस्थान के अलावा दिल्ली व छत्तीसगढ़ में भी होगा। यही नहीं वैश्य वर्ग बहुत मुखर नहीं रहता है, इस वजह से राज्य के अन्य वर्गों को उससे बहुत दिक्कत भी नहीं होगी। पार्टी चाहे तो गुर्जर या सैनी पर भी दांव खेल सकती है। यादव भी पार्टी के साथ हैं, लेकिन उनका असर एक ही इलाके तक सीमित है। पार्टी के कुछ जाट नेता चाहते हैं कि सरकार का नेतृत्व किसी जाट को दिया जाए, ताकि जाटों की नाराजगी को कम किया जा सके। इससे पार्टी के कोर वोटर के नाराज होने का खतरा है। इन हालात में पार्टी जाटों को नेतृत्व देने का रिस्क नहीं लेगी। जातिगत समीकरणों के अलावा इस बार भाजपा की कोशिश ऐसे चेहरे को नेतृत्व देने की होगी, जो प्रदेश में भाजपा के भविष्य का चेहरा बन सके। इसलिए हो सकता है कि पार्टी किसी ऐसे युवा चेहरे पर दांव खेलेगी जो सबको चौंकाने वाला होगा। ऐसा कदम पार्टी उत्तराखंड में उठा चुकी है, जहां पर तमाम वरिष्ठों को किनारे करते हुए पुष्कर सिंह धामी जैसे युवा को सरकार का नेतृत्व सौंप दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हरियाणा को भली प्रकार से जानते हैं, इसलिए वे अब हरियाणा के फैसले को टालेंगे नहीं।