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रूसी लैंडर से पहले क्यों नहीं उतर सकता भारत का विक्रम?

भारत के महत्‍वाकांक्षी चंद्रयान तीन प्रोजेक्‍ट में 17 अगस्‍त का दिन अत्‍यंत ही महत्‍वपूर्ण हो गया है। आपको बता दें कि आज चंद्रयान के ऑर्बिटर से लैंडर अलग हो गया है। इसरो ने इसकी औपचारिक घोषणा कर दी है। यानी अब यह चंद्रयान दो हिस्‍सों में बंट गया है, जिसमें एक हिस्‍सा चंद्रमा पर उतरने के लिए अपनी यात्रा पर आगे बढ़ेगा और दूसरा हिस्‍सा चंद्रमा की कक्षा में चक्‍कर लगाएगा। हमारा लैंडर 23 अगस्‍त को शाम पांच बजकर सैंतालिस मिनट पर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। आपको बता दें कि हमसे दो दिन पहले रूस का लैंडर भी चंद्रमा पर उतर चुका होगा। रूस ने अपना चंद्र मिशन हमारे बाद शुरू किया और वह हमसे पहले चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतर रहा है। यह सवाल अनेक भारतीयों को विचलित भी कर रहा है कि रूस दक्षिणी ध्रुव पर हमसे पहले उतर कर ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बनना चाहता है। अनेक उत्‍साही भारतीय चाहते हैं कि इसरो कुछ ऐसा करे कि हमारा विक्रम लैंडर उससे पहले चांद पर उतर जाए। अब हम आपको बताते हैं कि ऐसा क्‍यों नहीं हो सकता और रूस हमारे बाद मिशन शुरू करके हमसे पहले कैसे चांद पर पहुंच सकता है?

असल में रूस के चंद्रयान यानी लूना 25 में जो इंजन लगा था वह हमारे चंद्रयान के इंजन की तुलना में कहीं अधिक शक्‍तिशाली है और उसने अपने लैंडर को सीधे चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा दिया, जबकि हमने कम ताकत वाले इंजन से चंद्रयान को पहले पृथ्‍वी की कक्षा में पहुंचाया और उसके बाद लगातार उसके इंजन को गति देकर उसकी कक्षाएं बढ़ाते हुए उसे चंद्रमा की कक्षा में भेजा। इसके बाद लगताार उसकी परिक्रमा यानी आर्बिट को घटाते हुए हम चंद्रमा के करीब पहुंचे हैं। चंद्रयान इस समय 153×163 किलोमीटर की कक्षा में घूम रहा है। कई लोग इससे यह अनुमान भी लगा सकते हैं कि इसरो का मिशन रूस के मिशन से कहीं पीछे है, लेकिन अगर आप भी ऐसा सोच रहे हैं कि हमारा मिशन पीछे है तो आप गलत हैं। इसरो ने जिस तकनीक से चंद्रयान को भेजा है, वह रूस की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण है, लेकिन रूस के मिशन से बहुत सस्‍ती है। दुनिया में चंद्रमा की ओर जाने वाला पहला मिशन रूस ने ही शुरू किया था, लेकिन उसका ताजा मिशन 47 साल के बाद हो रहा है। इसकी बड़ी वजह इस मिशन की भारी-भरकम लागत है। भारत ने अपने चंद्र मिशन को कभी रोका नहीं, असफलता के बावजूद वह तीसरा मिशन कर रहा है, इसकी वजह यह है कि हमारा खर्च बाकी दुनिया से काफी कम है। भविष्‍य में अगर दुनिया चंद्रमा के बारे में अधिक से अधिक जानना चाहती है तो उसे ऐसे कई मिशन करने होंगे तब शायद भारत की सस्‍ती तकनीक ही सबसे मुफीद होगी। इसलिए हमारी तकनीक ही चंद्रमा तक पहुंचने की भविष्‍य की तकनीक हो सकती है।

अब हम आपको बताते हैं कि हमारा चंद्रयान रूस के लैंडर से पहले क्‍यों नहीं उतर सकता। वरिष्‍ठ पत्रकार प्रमोद जोशी के ब्‍लॉग ज्ञानकोश के मुताबिक चंद्रयान-3 का प्रक्षेपण 14 जुलाई को हुआ था, जबकि रूसी मिशन का प्रक्षेपण 10 अगस्त को हुआ। आपके मन में सवाल होगा कि फिर भी रूसी यान भारतीय यान से पहले क्यों पहुँचेगा? चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर तभी उतरेगा, जब वहाँ की भोर शुरू होगी। चूंकि रूसी लैंडर भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, इसलिए संभवतः रूस इस बात का श्रेय लेना चाहता है कि दक्षिणी ध्रुव पर उतने वाला पहला यान रूसी हो। दक्षिणी ध्रुव पर अभी तक किसी देश का यान नहीं उतरा है।

चंद्रमा का एक दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है। चंद्रयान-3 केवल 14 दिन काम करने के लिए बनाया गया है, जबकि रूसी यान करीब एक साल काम करेगा। लूना-25 जिस जगह उतरेगा, वहाँ भोर दो दिन पहले होगी। भोर का महत्व इसलिए है, क्योंकि चंद्रमा की रात बेहद ठंडी होती है। वहां दिन का तापमान 140 डिग्री से ऊपर होता है और रात का माइनस 180 से भी नीचे।

चंद्रयान-3 में हीटिंग की व्यवस्था नहीं की गई है। उसके लिए ईंधन का इंतजाम अलग से करना होगा, जबकि लूना-25 में हीटिंग की व्यवस्था की गई है, ताकि वह साल भर काम करे। बहरहाल भारतीय अभियान के पास काम ज्यादा हैं, जो वह कम से कम समय में पूरे करेगा। ठंड में वह कितने समय तक चलेगा, इसका पता भी लग जाएगा।

चंद्रयान-3 की गति धीमी क्यों है और वह लूना-25 की तुलना में कम समय तक काम क्यों करेगा? इन दोनों बातों को समझने के लिए प्रक्षेपण के लिए इस्तेमाल किए गए रॉकेट और चंद्रयान-3 और लूना-25 की संरचना के फर्क को समझना होगा।

चंद्रयान के प्रक्षेपण के लिए भारत के सबसे शक्तिशाली एलवीएम-3 रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था, जबकि रूसी यान को सोयूज़-2.1बी रॉकेट पर रखकर भेजा गया है। सरल शब्दों में कहा जाए, तो रूसी रॉकेट ज्यादा शक्तिशाली है, उसका इंजन बेहतर है, और उसमें ज्यादा ईंधन ले जाने की क्षमता है, जिसके कारण वह कम ईंधन में ज्यादा दूरी तय कर सकता है। दूसरा फर्क यह है कि चंद्रयान-3 लूना-25 के मुकाबले करीब दोगुने से ज्यादा भारी है। चंद्रयान-3 का वजन है 3,900 किलोग्राम और लूना-25 का 1,750 किलो। चंद्रयान में एक रोवर भी है, जो चंद्रमा की सतह पर चलेगा, जबकि लूना-25 में रोवर नहीं है। रूसी रॉकेट को कम वजन ले जाना था, उसकी ताकत ज्यादा है और उसमें ईंधन ज्यादा है। भारतीय रॉकेट ने कम ईंधन का सहायता से ज्यादा वजनी यान को चंद्रमा पर पहुँचाया है।

अलग पद्धति

दोनों अभियानों में चंद्रमा तक पहुँचने की योजना दो अलग तरीकों और रास्तों से अपनाई गई है। जहाँ रूसी रॉकेट धरती से उड़ान भरकर पृथ्वी की गुरुत्व शक्ति को पार करते हुए सीधे चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश कर गया है, वहीं चंद्रयान पहले पृथ्वी की कक्षा में रहा और धीरे-धीरे उसने अपनी कक्षा का दायरा बढ़ाया। इस तरीके से जब वह चंद्रमा की कक्षा का करीब पहुँचा तब गुलेल की तरह से पृथ्वी की कक्षा को छोड़कर उसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। फिर धीरे-धीरे वह छोटी कक्षा में आता जा रहा है। इसमें ज्यादातर अपने ईंधन के बजाय पहले पृथ्वी की और बाद में चंद्रमा की गुरुत्व शक्ति का सहारा लिया गया। इस तरह से उसका रास्ता लंबा हो गया है। भारत के मंगलयान के लिए भी इसी तकनीक का सहारा लिया गया था।

 

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