वीडियो-चांद की सतह पर घूम रहा प्रज्ञान अब भेजेगा रोचक जानकारी, दुनिया की नजरें इसरो पर टिकीं
चंद्रयान तीन की सफल लैंडिंग के बाद अब प्रज्ञान रोवर लैंडर विक्रम से बाहर आ गया है। अब विक्रम चांद की सतह पर पांच सौ मीटर के दायरे में घूकर नमूने जमा करेगा और उसकी जानकारी इसरो को भेजेगा। चंद्रयान की सफल लैंडिंग के बाद पूरे देश में उत्सव जैसा माहौल है। सबसे अच्छी बात यह है कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने भी इस बार कटुता और ईर्ष्या को छोड़कर भारत की इस उपलब्धि का स्वागत किया है। देश के लोगों ने जिस तरह से रोमांच के 22 मिनटों का आनंद लिया और जिस तरह से दुनियाभर में इसरो की प्रशंसा हो रही है, वह हर भारतीय के लिए गर्व का पल है। नासा ने तो इसरो को बधाई देते हुए इस परियोजना में भागीदार बनने की इच्छा जताई है। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने लूना25 के क्रैश होने के बावजूद भारतीय वैज्ञानिकों की जमकर तारीफ की है।
दुनिया के लिए अब अगले 14 दिन बहुत रोमांचक होने वाले हैं, क्योंकि प्रज्ञान रोवर चांद के बारे में अनेक चौंकाने वाली जानकारी दे सकता है। वहीं इस सफलता ने इसरो के हौसलों को बुलंद कर दिया है और वह सूर्य के बारे मंे जानकारी जुटाने के लिए आदित्य परियोजना की तैयारियों में जुट गया है। जहां सारी दुनिया भारत की सफलता से खुश थी, वहीं इक्का दुक्का ऐसे लोग भी थे, जो इसे बड़ी उपलब्धि मानने को तैयार नहीं थे। इसमें एक नाम जस्टिस मार्कंडेय काटजू का है। काटजू अक्सर चुभने वाली टिप्पणियां करते हैं। उन्होंने अमेरिका के चांद पर उतरने की बात कहते हुए टिप्पणी कि की अमेरिका ने तो 1969 में ही चांद पर आदमी को पहुंचा दिया था, ऐसे में सिर्फ यान भेजने से साफ है कि हम अभी कितने पीछे हैं। बेहतर होता कि काटजू इस ट्वीट को करने से पहले चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के बारे में जान लेते। आपको बता दें कि चांद की सतह पर सबसे पहले यान उतारने वाला रूस और पहली बार चांद पर मानव को भेजने वाला अमेरिका भी तमाम प्रयासों के बावजूद आज तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर नहीं पहुंच सका है। इसलिए भारत की यह उपलब्धि पूरी दुनिया के लिए खास है।
अगर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचना इतना ही अासान होता तो अब 12 लोगों को चांद पर भेज चुका अमेरिका क्या इसे नहीं करता? चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना एक जटिल अभियान है। आपको बता दें कि चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पानी है, यह जानकारी भी भारत के चंद्रयान एक की वजह से ही सामने आ सकी। हालांकि इसकी घोषणा नासा ने की, लेकिन यह चंद्रयान पर लगे नासा के उपकरण की वजह से ही पता चल सका। नासा ने इसरो को विश्वास में लिए बिना ही पानी की खोज की एकतरफा जानकारी जारी कर दी थी, इसलिए चंद्रयान तीन पर कोई विदेशी उपकरण लगाया ही नहीं गया है।
इस बार इसरो चांद से मिलने वाली हर जानकारी को खुद ही जारी करेगा। साथ ही आपको बता दें कि नासा के दक्षिणी ध्रुव पर अगर अच्छी मात्रा में बर्फ का पता चलता है तो यह भविष्य के मिशनों के लिए वरदान साबित हो सकता है, क्योंकि इससे भविष्य में मानव चांद पर रहकर लंबे समय तक अनुसंधान कर सकेगा।
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