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छत्तीसगढ़ में बघेल के लिए राह आसान नहीं, भाजपा के सामने भी छिटके वोटरों को वापस लाने की चुनौती

छत्‍तीसगढ़ का विधानसभा चुनाव अत्‍यंत ही रोचक मोड़ पर पहुंच गया है। एक बार फिर मतदान से ठीक पहले मुख्‍यमंत्री भूपेश बघेल विवादों में आ गए है। ईडी ने महादेव एप के जिस विवादित कूरियर को पकड़कर करोड़ों रुपए वसूल किए हैं, उसने साफ कहा है कि यह धन भूपेश बघेल के लिए है। हालांकि, भूपेश बघेल ने इसे फर्जी करार देते हुए राजनीतिक दबाव में ईडी की साजिश बताया है। ईडी ने भी अभी आगे जांच कराने की बात कही है, लेकिन जिस तरह से उसने कूरियर के बयान को सार्वजनिक किया है, वह सवाल जरूर खड़े करता है। वैसे यह पहली बार नहीं है, जब ठीक मतदान से पहले वे किसी गंभीर विवाद में फंसे हैं। पिछले चुनाव से ठीक पहले भी बघेल की एक विवादित सीडी वायरल हुई थी, जिसमें वह तत्‍कालीन कांग्रेस प्रभारी पीएल पूनिया के बारे में विवादित टिप्‍पणी कर रहे थे। इससे दोनों नेताओं के संबंधों में काफी खटास आ गई थी। इसके बावजूद बघेल ने न केवल कांग्रेस को जिताया,बल्‍कि वह सीएम की कुर्सी पाने में भी सफल रहे। छत्‍तीसगढ़ में मतदान का पहला चरण मंगलवार 7 नवंबर को है अौर इसके लिए चुनाव प्रचार 5 नवंबर रविवार को थम जाएगा। पहले चरण में कुल 20 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। इसमें 12 सीटें बस्‍तर जिले की और आठ सीटें राजनंदगांव की हैं।

पिछली बार हालात कुछ अलग थे। लोग रमन सिंह सरकार के तीन कार्यकालों के बाद  उकता गए थे। असल में रमन सिंह ने छत्‍तीसगढ़ में विकास के काम तो काफी कराए थे, लेकिन साथ ही भ्रष्‍टाचार के आरोपों से बच नहीं सके थे। उनके कुछ मंत्री तो भ्रष्‍टाचार के ही प्रतीक बन गए थे। यही वजह रही कि चुनाव मेंं अधिकांश मंत्री व विधायक चुनाव हार गए। भूपेश बघेल ने किसानों को धान की खरीद पर जो भारी भरकम बोनस देने की घोषणा की थी वह भी गेमचेंजर रहा। इस बार भाजपा ने भी 31 सौ रुपये क्‍विंटल की दर से धान खरीदी की घोषणा कर दी है। इसलिए अब सवाल यह है कि क्‍या कांग्रेस भूपेश बघेल सरकार के काम के भरोसे दोबारा सत्‍ता हासिल कर सकेगी?

ऊपरी तौर पर देखा जाए तो भूपेश बघेल के खिलाफ कोई बड़ी नाराजगी नहीं दिखती है। लेकिन, पिछले चुनाव में भी रमन सिंह के खिलाफ ऐसा ही माहौल था, इसके बावजूद भाजपा की जीती हुई दो दर्जन सीटों पर पार्टी के प्रत्‍याशियों की दुर्गत हो गई थी। पार्टी के वोट घटकर तली पर पहुंच गए थे। लेकिन, ऐसा भी नहीं था कि भाजपा के सभी वोट छिटककर कांग्रेस के खाते में आ गए हों, एक दर्जन से अधिक ऐसी सीटें रहीं, जहां पर भाजपा से छिटके अधिकांश वोट गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, अजीत जोगी की जनता कांग्रेस या फिर निर्दलीयों के खाते में चले गए। वजह साफ थी कि लोग भाजपा या रमन सिंह से तो नाराज थे, लेकिन कांग्रेस से खुश भी नहीं थे। इसलिए इन चुनावों के ठीक छह माह बात हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा राज्‍य की अधिकांश सीटें जीतने में सफल रही। इसीलिए राज्‍य में कांग्रेस की राह ऊपरी तौर पर तो आसान दिख रही है, लेकिन अगर भाजपा का नाराज वोटर लौट आया तो बघेल सरकार के लिए मुश्‍किल हो सकती है। बघेल सरकार का रिकॉर्ड भी कोई बहुत साफ सुथरा है ऐसा नहीं है। शराब से कमाई करने में बघेल ने रमन सिंह का ही अनुकरण किया है। एक खास कंपनी को बढ़ावा देकर लोगों की जेब पर डाका ही डाला है।

राहुल गांधी का ओबीसी कार्ड भी बघेल को भारी पड़ सकता है। क्‍योंकि राज्‍य में पिछड़ों में सबसे बड़ी संख्‍या साहू समाज की है और वे इस बार बघेल को मौका नहीं देना चाहते। पिछले चुनाव में ताम्रध्‍वज साहू सीएम पद के बड़े दावेदार थे, इसलिए साहू समाज कांग्रेस के समर्थन में आ गया था, लेकिन इस बार चेहरा साफ है, इसलिए साहू समाज पाला बदल भी सकता है। भाजपा ने रमन सिंह को चेहरा न बनाकर मतदाताओं के सामने विकल्‍प खुला छोड़ दिया है और यह भाजपा के पक्ष में जा सकता है। हालांकि, जोगी कांग्रेस के अमित जोगी ने राज्‍य की 80 सीटों पर उम्‍मीदवार उतारकर कांग्रेस और भाजपा दोनों की ही टेंशन बढ़ा दी है। कांग्रेस को लगता है कि जोगी उसे ही अधिक नुकसान पहुंचाएंगे। खुद अमित जोगी बघेल को पाटन में चुनौती दे रहे हैं। हालांकि, बघेल सरकार से नाराज मतदाता जोगी कांग्रेस को भी समर्थन दे सकते हैं। जो भाजपा के लिए नुकसानदेह होगा। कुल मिलाकर छत्‍तीसगढ़ में किसी भी दल की जीत के स्‍पष्‍ट संकेत नहीं हैं।

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