
23 सितंबर 2025 की सुबह जब कोच्चि शहर अपनी सामान्य चहल-पहल की ओर लौट रहा था, तब औपचारिक पोशाक पहने कुछ लोग फ़िल्म अभिनेता दुलकर सलमान के एलम्कुलम स्थित घर के बाहर अपनी गाड़ियों से उतरे.
उसी समय शहर के कई इलाक़ों में प्रमुख फ़िल्मी सितारों, उद्योगपतियों, हाई-नेटवर्थ व्यक्तियों, सेलिब्रिटीज़ और सोशल मीडिया इन्फ़्लुएंसर्स के घरों के सामने भी यही दृश्य दोहराए गए. अभिनेता पृथ्वीराज के थेवरा स्थित घर और अभिनेता अमित चक्कलक्कल के कलूर स्थित निवास पर भी टीमें पहुंचीं. पांच किलोमीटर के दायरे में फैले ये तीन स्थान अचानक एक बड़े पैमाने की कार्रवाई के केंद्र बन गए. पता चला कि नुमखोर नाम से एक राज्यव्यापी अभियान चल रहा है, जिसका अर्थ भूटानी भाषा में वाहन होता है. इस अभियान का निशाना वे महंगी सेकेंड-हैंड लग्ज़री कारें थीं जिन्हें भूटान से केरल में कथित रूप से तस्करी कर लाया गया था. इस ऑपरेशन में एंटी-टेररिस्ट स्क्वॉड, मोटर व्हीकल्स डिपार्टमेंट और केरल पुलिस भी शामिल रही. एक दिन चली इस कार्रवाई के अंत तक कस्टम्स ने 37 प्रीमियम गाड़ियां ज़ब्त कर लीं. इनमें दुलकर के नाम पर पंजीकृत एक डिफेंडर और अमित की लैंड क्रूज़र भी शामिल थी. दुलकर ने अब केरल हाईकोर्ट में जाकर अपनी गाड़ी की रिहाई की मांग की है, उनका दावा है कि गाड़ी कानूनी रूप से खरीदी गई थी.
कोयंबतूर-आधारित गिरोह
कस्टम्स (प्रिवेंटिव) कमिश्नरेट कोच्चि के आयुक्त टी. तिजु के अनुसार, ये गाड़ियां उन 150-200 गाड़ियों में से हैं जिन्हें पिछले कुछ सालों में कोयंबतूर-आधारित गिरोह ने भूटान से ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से भारत लाया. बीते छह महीनों में कस्टम्स ने यह सूची तैयार की थी, जिसमें सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय से मिले इनपुट्स का सहारा लिया गया. अगले दिन इडुक्की ज़िले के अदिमाली और कोच्चि के कुंडनूर में स्थित गैराज से दो और लैंड क्रूज़र जब्त की गईं. जल्द ही दुलकर के नाम पंजीकृत एक निसान पेट्रोल भी उनके एक करीबी के कोच्चि स्थित अपार्टमेंट से बरामद की गई. सोशल मीडिया इन्फ़्लुएंसर शिल्पा सुरेंद्रन की गाड़ी अदिमाली से ज़ब्त की गई. उनका कहना है कि उन्होंने इसे तिरूर के एक व्यक्ति से 15 लाख रुपये में ख़रीदा था और 5 लाख रुपये इसके रिस्टोरेशन पर खर्च किए थे. “जीवन भर की कमाई को इस तरह खो देना बेहद दर्दनाक है. मुझे कैसे पता चलता कि इसके काग़ज़ात जाली हैं? यह पूरी तरह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि ऐसे फर्जी पंजीकरण को रोके.
तस्करी के तरीक़े
तिजु के मुताबिक ये गाड़ियां तीन तरीक़ों से भारत लाई गईं. पूरी तरह खोले हुए हिस्सों में, कंटेनरों में छिपाकर या फिर पर्यटकों को मिले परमिट का दुरुपयोग करके सीधे इंडो-भूटान सीमा पार करके.
जाली मुहरें और दूतावासों के प्रतीक
कस्टम्स अधिकारियों का कहना है कि भूटान की ढीली सीमा और कम आयात शुल्क व्यवस्था तस्करों को आकर्षित करती है. आशंका है कि इन गाड़ियों का इस्तेमाल सोने, नशीले पदार्थों और अन्य तस्करी में भी हुआ हो.
जांच में यह भी सामने आया कि गिरोह ने भारतीय सेना, भारतीय व अमेरिकी दूतावासों और विदेश मंत्रालय की मुहरें व प्रतीक जाली बनाए और उन्हें दिखाकर खरीदारों को विश्वास दिलाया कि ये गाड़ियां आधिकारिक हैं. करीब 90% गाड़ियां फर्जी दस्तावेज़ों से अन्य राज्यों के आरटीओ में पंजीकृत की गईं और बाद में कोयंबतूर लाकर देशभर में बेची गईं. पारिवहन पोर्टल में भी गड़बड़ी की आशंका जताई गई है. उदाहरण के लिए, 2014 में बनी एक गाड़ी को 2005 में ही पहले मालिक के नाम पर पंजीकृत दिखाया गया.
कानून और चुनौतियां
भारत में सेकेंड-हैंड गाड़ियों का आयात आमतौर पर प्रतिबंधित है. केवल ट्रांसफर ऑफ रेज़िडेंस नियम के तहत ही तीन साल से अधिक उपयोग की गई गाड़ी लाई जा सकती है, वह भी 160% आयात शुल्क और पांच साल तक न बेचने की शर्त पर. राज्य सड़क सुरक्षा प्राधिकरण के विशेषज्ञ सदस्य उपेंद्र नारायणन का कहना है कि मोटर वाहन विभाग को आधुनिक तकनीक से लैस करना ज़रूरी है, क्योंकि यह विभाग अभी भी अर्धशतक पीछे है. वकील एम. जितेश मेनन के मुताबिक, फर्जी काग़ज़ात पर पंजीकृत इन गाड़ियों को भारतीय सड़कों पर चलाना ग़ैरक़ानूनी है और इनकी बिक्री भी शून्य मानी जाएगी. अंततः इन गाड़ियों को कबाड़ घोषित करना पड़ सकता है. कस्टम्स ने सभी मालिकों से ज़ब्त गाड़ियों के काग़ज़ात मांगे हैं. अनुपालन न करने पर कस्टम्स एक्ट के तहत गिरफ्तारी तक की कार्रवाई हो सकती है.
मीडिया ब्रीफ़िंग में ड्रामा
कस्टम्स कमिश्नर की प्रेस कॉन्फ़्रेंस भी नाटकीय रही. बीच में आए एक फ़ोन कॉल के बाद उन्होंने अचानक प्रेस मीट समाप्त कर दी और जल्दबाज़ी में निकल गए. इसने कार्रवाई के भविष्य पर सवाल खड़े कर दिए. सुबह-सुबह की इस कार्रवाई और उसके बाद की घटनाओं ने कई सवाल अनुत्तरित छोड़ दिए हैं कि क्या इसमें और भी कुछ छिपा है?