अगर अमजद की जगह डैनी गब्बर होते?
सिनेमालोक की इस कड़ी में हम कालजयी फिल्म शोले से जुड़ी हुई कुछ रोचक बातें आपके सामने पेश करेंगे। सबसे पहले अगर आपने शोले देखी है तो आप पाएंगे कि यह एक फिल्म न होकर बहुत सी छोटी-छोटी कहानियों का गुच्छा थी। दूसरी बात ये कहानियां इतने अच्छे तरीके से पेश की गईं कि हरेक में से एक करेक्टर उभर कर स्टार बन गया। कई कहानियों में तो एक से अधिक करेक्टर उभरे। याद करें अंग्रेजों के जमाने के जेलर को पूरी फिल्म में जेल की कहानी पूरी होने के बाद वह कहीं नजर नहीं आए, लेकिन फिल्म खत्म होने के बाद भी लोग उनको भूले नहीं। इस कहानी का एक और पात्र हरिराम नाई भी हमेशा याद रहा और चुगलखोर लोगों का पर्याय बन गया। सूरमा भोपाली की कहानी भी कुछ मिनटों की थी, लेकिन हमारा नाम सूरमा भोपाली ऐसे ही नहीं है, डायलाॅग खासा चर्चित रहा। बसंती का करेक्टर तो पूरी फिल्म में रहा, लेकिन उसकी घोड़ी धन्नो को कौन भूल सकता है। मौसी की कहानी भी कुछ ही देर की थी, लेकिन यह भी भूलने लायक नहीं है। और ताे और आप उस किसान हरिया को भी नहीं भूल सकते जो गब्बर को देने के लिए बहुत कम अनाज लाता है। कालिया और सांबा के तो कहने ही क्या। इमाम सािहब हों या अहमद मियां दोनों चरित्र याद रखने लायक हैं। बाकी, ठाकुर, जय-बीरू और गब्बर को तो कोई कैसे भूल सकता है। बीरू ने अपनी बात को मनवाने के लिए टंकी पर चढ़ने का जो तरीका अपनाया था, वह तो लोगों के दिमाग पर ऐसा छाया हुआ है कि आज भी ऐसा लगातार हो रहा है। हाल के दिनों में तो मोबाइल टावर ने टंकी का स्थान ले लिया है।
गब्बर के किरदार में अमजद खान की भूमिका को भी भुलाया नहीं जा सकता। खलनायकों के रूप में हमें कलाकार तो याद रहते हैं, लेकिन उनकी भूमिकाओं को हम अक्सर भूल जाते हैं। लेकिन शोले के गब्बर ने अमजद खान को जो पहचान दी उसकी वजह से वह हमेशा गब्बर के रूप में ही जाने जाते रहे। यहां पर रोचक बात यह है कि अमजद गब्बर के रोल के लिए पहली पसंद नहीं थे। फिल्म के लेखक जावेद अख्तर चाहते थे कि डैनी को गब्बर के रूप में लिया जाए। लेकिन, किन्हीं कारणों से डैनी ने इस भूमिका के लिए मना कर दिया और अमजद खान को यी भूमिका मिल गई। जहां तक याद रखने वाले खलनायकों की बात है तो शोले के बाद किसी विलेन का सर्वाधिक चर्चित डायलॉग मोगेम्बो (अमरीश पुरी) खुश हुआ है। वैसे शान में शाकाल के रूप में कुलभूषण खरबंदा की भूमिका भी याद रखी जाने वाली है।
कितने आदमी थे, यह डायलॉग अगर आप आम जिंदगी में भीे बोलते हैं तो अनेक बार अनायास ही यह शोले के स्टाइल में मुंह से निकल जाता है। लेकिन, क्या आप जानते हैं इस एक डायलॉग को फाइनल करने में 40 बार रीटेक करना पड़ा था। शोले के क्लाइमेक्स सीन में नकली की बजाय असली गोली का इस्तेमाल हुआ था और अमिताभ बाल-बाल बच गए थे।