हरियाणा

पंचायत चुनाव में आप के शानदार प्रदर्शन से हरियाणा के दलों में बेचैनी

143 पंचायत समितियाें और 22 जिला परिषदों के चुनाव तीन चरणों में संपन्न हुए

हरियाणा में हाल में हुए पंचायत चुनावों ने सत्तारूढ़ भाजपा-जजपा गठबंधन को तगड़ा झटका दिया है। पंजाब की तरह ही राज्य में भी आप की धमक सुनाई दी है। हरियाणा में 143 पंचायत समितियाें और 22 जिला परिषदों के चुनाव तीन चरणों में संपन्न हुए। इन 22 जिला परिषदों में 411 सदस्यों का चयन हुआ। भाजपा और आप ने यह चुनाव अपने निशान पर लड़ा था, जबकि सरकार की सहयोगी जजपा और कांग्रेस ने पार्टी के निशान पर चुनाव नहीं लड़ा था।

भाजपा ने जिला परिषद की 100 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन वह सिर्फ 22 सीटें ही जीत सकी। आप ने भी करीब इतनी ही सीटों पर चुनाव लड़ा और वह 15 सीटों पर विजयी रही। आप ने सिरसा जिले में छह सीटें जीतकर सबको चौंकाया है। भाजपा का दावा है कि उसके 150 ऐसे प्रत्याशी भी जीतें हैं, जिनका वह समर्थन कर रही थी। सवाल यह है कि जिन प्रत्याशियों का भाजपा समर्थन कर रही थी, उनको पार्टी ने निशान क्यों नहीं दिया? पार्टी का यह भी दावा है कि कुल िमलाकर उसके समर्थन से 300 प्रत्याशी विजयी हुए हैं। हो सकता है सत्ता में होने के कारण भाजपा अधिकतर जिलों में जीते सदस्यों को अपने पाले में लाने में कामयाब हो जाए, लेकिन एक बात साफ है कि राज्य में भाजपा का समर्थन लगातार कम हो रहा है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में तो पार्टी का प्रदर्शन लगातार गिर रहा है। हाल ही में हुए आदमपुर उपचुनाव में पार्टी ने भले ही जीत हासिल कर ली हो, लेकिन कांग्रेस को मिले वोट साफ बताते हैं कि जाट समुदाय भाजपा से बहुत नाराज है और वह उसके खिलाफ एकतरफा वोटिंग कर रहा है।

आप की जीत से भाजपा के साथ कांग्रेस, इनेलो व जजपा की चिंता बढ़ना लाजिमी है। आप ने अब तक हर राज्य में कांग्रेस की कीमत पर अपनी जगह बनाई है और अगर यही ट्रेंड हरियाणा में बना तो कांग्रेस को खतरा हो सकता है। सिरसा में पार्टी की सफलता इनेलो व जजपा के लिए चिंता का सबब है। लेकिन, भाजपा के लिए खतरा कहीं बड़ा है, क्योंकि आप को जाट समर्थन देंगे, ऐसा नहीं लगता। इसलिए साफ है कि आप को समर्थन देने वालों में वे लोग हैं, जो अब तक भाजपा को वोट दे रहे थे। जिस तरह से 2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के अनेक नेता बहुत ही कम अंतर से जीते हैं, ऐसे में अगर आप को भाजपा का कुछ प्रतिशत वोट भी शिफ्ट हुआ तो पार्टी के सभी समीकरण बिगड़ जाएंगे।

राज्य में गैर जाट समुदाय के एक बड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाला सैनी समुदाय भी भाजपा से खफा दिख रहा है। यही वजह है कि अंबाला में भाजपा के कुरुक्षेत्र सांसद नायब सैनी की पत्नी सुमन सैनी चुनाव हार गईं। सिरसा में भाजपा 10 सीटों पर लड़ी और सब पर हार गई। पंचकूला में सभी 10 सीटें पार्टी हार गई। अंबाला में पार्टी 15 में से सिर्फ दो सीटें ही जीत सकी। पार्टी के फायरब्रांड मंत्री अनिल विज के जिले में पार्टी की यह हार चौंकाने वाली है।

मुख्यमंत्री मनोहरलाल के समर्थक चाहे जो दावा करें, लेकिन यह तय है कि वह जनता की नब्ज को पहचानने में नाकाम रहे हैं। राज्य में दो बार प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर सत्ता में आ चुकी भाजपा के लिए अगला चुनाव बड़ी चुनौती बन सकता है। मौजूदा हालात में जजपा के साथ गठबंधन पर भी पार्टी में पुनर्विचार होने की संभावना है, क्योंकि जजपा की वजह से भी पार्टी का नॉन जाट वोटर नाराज बताया जा रहा है। वहीं जजपा के लिए भी हालात ठीक नहीं हैं। भाजपा के साथ होने से उसका कोर जाट वोटर उसके खिलाफ हो गया है। यही वजह है कि जाटों ने जजपा की बजाय इनेलो को महत्व देना शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर गुजरात चुनाव के बाद हरियाणा में पार्टी व सरकार दोनों ही स्तर पर बड़े पैमाने पर बदलाव होने की संभावना है।

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