क्या है लेपाक्षी मंदिर के स्तंभ का रहस्य?
बेगलुरू से 150 किलोमीटर की दूरी पर आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के लेपाक्षी गांव में वीरभद्र मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर कछुए के आकार की पहाड़ी पर बना हुआ है, जिसे तेलुगू में कुर्मसैलम कहते हैं। इस मंदिर को महाराजा अच्युता देव राय के समय विजयनगर साम्राज्य के अधीन रहे दो महत्वाकांक्षी भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने 1530 से 1545 ईस्वी के बीच बनाया था। अच्युता देव प्रसिद्ध महाराज कृष्ण देव राय के छोटे भाई थे। इस मंदिर में नंदी, भगवान शिव, विष्णु व गणेश तथा माता भद्रकाली की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर के स्तंभों, दीवारों और छत पर अनेक मूर्तियां और पेंटिंग बनी हुई है। ये सभी विजयनगर की प्रसिद्ध राजधानी हम्पी में मिले मंदिरों व भवनों के ही समान है। ये मूर्तियां और चित्रकला पुराण की विभिन्न कथाओं को बताती हैं। कुल मिलाकर यह मंदिर भारतीय वास्तुकला का शानदार नमूना है और पुरातात्विक महत्व का भवन है। लेकिन, इस मंदिर की एक खूबी इसे सब मंदिरों से अलग बनाती है।
वीरभद्र मंदिर में एक कल्याण मंडपम् है। मान्यता है कि यहां पर तमाम देवी देवताओं की मौजूदगी में भगवान शिव अौर पार्वती का विवाह हुआ था। यदि आप इस मंडपम् में जाएंगे तो आप देखेंगे कि इसका निर्माण पूरा नहीं है और यह अधूरा है। इसीलिए कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यहां पर भगवान शिव का विवाह होने वाला था, लेकिन मंडपम् के पूरा नहीं बना पाने की वजह से ऐसा नहीं हो सका।
अब आप सोच रहे होंगे कि यह मंडपम् पूरा क्यों नहीं हो सका? असल में विरुपन्ना विजयनगर सामाज्य के खजांची भी थे। जब वह मंडपम् का निर्माण करा रहे थे तो उन्हें इसके साथ ही मंदिर का भी निर्माण शुरू करा दिया और खजाने का अधिकांश पैसा मंदिर बनाने पर खर्च कर दिया, जिससे मंदिर तो बन गया, लेकिन मंडपम् अधूरा रह गया। उस समय महाराजा अच्युता देव कहीं बाहर गए हुए थे। उन्होंने जब मंडपम् को अधूरा देखा तो वह अत्यंत कुपित हो गए और उन्होंने गुस्से में खजांची की आंख निकालने का आदेश दे दिया। विरुपन्ना एक अच्छे कार्य के लिए सजा की वजह नहीं समझ सके और उन्होंने खुद ही इस मंडपम् की पश्चिमी दीवार के पास अपनी आंखों को निकाल दिया। इस दीवार पर आज भी दो लाल निशान हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे विरुपन्ना की आंखों से निकले खून के है।
वीरभद्र मंदिर के बाहरी हिस्से में एक विशाल नृत्यशाला है, जिसकी छत 70 खंभों पर टिकी है। लेकिन, हकीकत यह है कि यह छत 69 खंभों पर टिकी है, क्योंकि इन खंभों में कोने का एक खंभा तो नृत्यशाला के फर्श को छूता ही नहीं है, यानी वह हवा में है। इस खंभे के निचले हिस्से और फर्श के बीच खाली जगह है, जिसके बीच से कोई पतला कपड़ा या कागज आरपार निकाला जा सकता है। सवाल यह है कि 20 फीट ऊंचा पत्थर का इतना भारी स्तंभ आखिर छत से कैसे जुड़ा हुआ है। वह भी सैकड़ों साल से।