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डब्लूएचओ की चौंकाने वाली रिपोर्ट – दुनिया में छह में से एक व्यक्ति को है यह बीमारी

अगर हम किसी आम बीमारी की बात करें तो बहुत से लोग, मधुमेह, रक्तचाप हृदय रोग अथवा कैंसर का नाम ले सकते हैं। लेकिन, अगर हम आपसे कहें कि बांझपन दुनिया की सबसे आम बीमारी है, जिससे हर छह वयस्कों में से एक व्यक्ति जूझ रहा है तो आप शायद ही भरोसा करें। कई लोग तो हमें गलत भी कह सकते हैं। लेकिन, विश्व स्वास्थ्य संगठन की 98 पेज की रिपोर्ट में बांझपन की व्यापकता और गंभीरता पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सामाजिक तौर पर शर्म की वजह से इस बीमारी के इलाज पर उचित ध्यान नहीं दिया जा रहा है। आपको बता दें कि अनेक देशों में नीमहकीम गोपनीयता के नाम पर इस बीमारी का इलाज करते हैं, जिससे बीमारी ठीक होने की बजाय और भी गंभीर हो जाती है। बड़ी संख्या में लोग किसी भी तरह का उचित इलाज कराते ही नहीं हैं। सरकारें खुद भी इस बीमारी के प्रति उदासीन नजर आती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1990 से 2019 के दौरान 100 से अधिक अध्ययनों के आधार पर अपनी रिपोर्ट को तैयार किया है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की व्यस्क आबादी का 17.5 प्रतिशत यानी औसतन हर छह में से एक व्यक्ति अपनी जिंदगी में कभी न कभी बांझपन की समस्या का सामना कर रहा है। संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रोस अधनोम घेब्रेयेसुस ने कहा कि यह रिपोर्ट बताती है कि बांझपन की बीमारी दुनिया में कितनी बड़ी और गंभीर है और इसे रोकने, पहचानने और इलाज के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।

टेड्रोस ने कहा कि इस रिपोर्ट से एक महत्वपूर्ण सच भी सामने आया है कि यह बीमारी किसी तरह का भेदभाव भी नहीं करती है यानी हर वर्ग और हर क्षेत्र में समान रूप से इसका प्रकोप है। उन्होंने कहा कि जितने लोग इससे प्रभावित हैं, उससे साफ है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में हो रही रिसर्च और नीतियों से अब बांझपन की बीमारी को अधिक समय तक अलग नहीं रखा जा सकता। इसलिए बीमारी से जो लोग जूझ रहे हैं, उन्हें मातृत्व अथवा पितृत्व का सुख देने के लिए सुरक्षित, प्रभावी और कम खर्च वाले तरीके उपलब्ध कराने की जरूरत है। संगठन ने कहा है कि उसके पास यह बताने के लिए पर्याप्त आंकड़े नहीं हैं कि यह बीमारी बढ़ रही है या घट रही है। रिपोर्ट के मुताबिक विभिन्न क्षेत्रों में इस बीमारी की व्यापकता में बहुत ही मामूली अंतर देखा गया है। उच्च, मध्यम व निम्न आय वर्ग के बीच तुलना करने पर भी देखा गया है कि यह बीमारी हर समुदाय, वर्ग, देश व क्षेत्र के लिए समान रूप से चुनौतीपूर्ण है। टेड्रोस कहते हैं कि दुनिया भर में करोड़ों लोगों के लिए माता-पिता बन पाने का रास्ता असंभव भले न हाे, लेकिन आसान नहीं है। परिभाषा के मुताबिक अगर कोई पुरुष और स्त्री एक साल तक बिना किसी सुरक्षा के यौन संबंध बनाते हैं और गर्भधारण नहीं होता है तो यह बांझपन की बीमारी हो सकती है। इससे गंभीर तनाव, लांछन और वित्तीय तंगी उत्पन्न हो सकती है। साथ ही प्रभावित व्यक्ति का मानसिक सवास्थ्य भी प्रभावित होता है।

बांझपन की अनेक वजह हो सकती हैं और कई बार बहुत जटिल भी होती हैं। यह एक ऐसी बीमारी है, जिससे पुरुष और स्त्री दोनों ही प्रभावित होते हैं। इसलिए बच्चा चाहने के इच्छुक लोगों के लिए यौन और प्रजनन सेवाओं की उपलब्धता इसके बचाव का प्राथमिक तरीका है। जबकि अनेक देशों में ये सुविधाएं अपर्याप्त हैं। इस बीमारी की इतनी व्यापकता के बावजूद बांझपन की रोकथाम, पहचान और इलाज यानी आईवीएफ (दूरबीन विधि) जैसी प्रजनन तकनीक आज भी धन की कमी से जूझ रही हैं और अत्यधिक मंहगी होने, सामाजिक कलंक लगने के डर और सीमित उपलब्धता की वजह से तमाम लोगों की पहुंच से बाहर है। अधिकतर देशों में बांझपन का इलाज निजी अस्पतालों में ही होता है, जिसकी वजह से वह महंगा पड़ता है। रिपोर्ट के मुताबिक गरीब देशों में लोग अमीर देशों की तुलना में प्रजनन देखभाल पर अधिक खर्च करते हैं।

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