हरियाणा विधानसभा का चुनाव इस बार बेहद रोचक परिणाम दे सकता है. आंकड़ों में कांग्रेस कुछ आगे तो दिख रही है, लेकिन उसकी राह एकदम साफ है ऐसा भी नहीं है. अगर हम पिछले विधानसभा चुनाव और हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव के परिणाम का विश्लेषण करें तो कई चौंकाने वाले पहलू सामने आते हैं. हाल के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस ने 5-5 सीटों पर जीत हासिल की. कांग्रेस नौ सीटों पर लड़ी और पांच पर विजयी रही. उसने कुरुक्षेत्र सीट आम आदमी पार्टी के लिए छोड़ दी थी.
2019 लोकसभा चुनाव 2019 विधानसभा चुनाव 2024 लोकसभा चुनाव
कुल मत प्रतिशत सीटें कुल मत प्रतिशत सीटें कुल मत प्रतिशत सीटें
भाजपा 7357347 58 10 45,69,016 36.49 40 59,96,486 46.11 5
कांग्रेस 3604106 28.4 0 35,15,498 28.08 31 56,79,473 43.67 5
आप 5,11,770 3.94 0
जजपा 6,19,970 4.9 0 18,58,033 14.80 10 113122 0.87 0
इनेलो 2,40,258 1.9 0 3,05,486 2.44 1 226052 1.74 0
2019 में इनेलो को हुआ था सर्वाधिक नुकसान
भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की थी. उसे 7357347 वोट मिले थे. कांग्रेस को भाजपा से आधे से भी कम 3604106 वोट मिले. छह महीने के भीतर हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 35,15,498 वोट मिले, लेकिन भाजपा को 45,69,016 वोट ही मिले. लोकसभा चुनाव की तुलना में दोनों ही दलों के वोट कम हुए थे. पहली बार विधानसभा का चुनाव लड़ रही जजपा तीसरे स्थान पर थी और उसे 18,58,033 वोट के साथ 10 सीटें मिलीं थीं. असल में सबसे ज्यादा नुकसान ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल को हुआ था, क्योंकि 2014 में 19 सीटें जीतने वाली इनेलो महज 1 सीट पर सिमट गई थी. कांग्रेस को सीटों के रूप में सबसे अधिक फायदा हुआ और वह 15 से 31 सीटों पर पहुंच गई. भाजपा की सात सीटें कम हो गईं और वह 40 सीटों पर ही सिमट गई. हालांकि जजपा व निर्दलीयों के साथ मिलकर भाजपा सरकार बनाने में सफल रही.
विधानसभा चुनाव में घटते हैं कुल मत
2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 59,96,486 और कांग्रेस को 56,79,473 व कांग्रेस की सहयोगी आप को 5,11,770 वोट मिले. यानी भाजपा के 11.91 फीसदी मतदाता घट गए वहीं कांग्रेस के 15.16 फीसदी वोटर बढ़ गए. अगर हम ट्रेंड को देखें तो यह स्पष्ट है कि लोकसभा की तुलना में विधानसभा में भाजपा व कांग्रेस दोनों का ही मत प्रतिशत घटता है. पिछले चुनाव में कांग्रेस का मत प्रतिशत बहुत ही कम घटा था, इसलिए उसकी सीटों की संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई थी, लेकिन भाजपा का मत प्रतिशत लोकसभा की तुलना में बहुत ज्यादा घटा था और वह बहुमत से दूर हो गई थी.
क्या जाटों का दिल जीत पाएंगे हुड्डा?
2014 और 2019 में हरियाणा का चुनाव तिकोना था. 2014 में इनेलो और 2019 में इनेलो से ही अलग हुई जजपा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया था. 2024 के लोकसभा चुनाव में इन दोनों ही दलों को मिलाकर केवल साढ़े तीन फीसदी मत मिले हैं. इनका अधिकांश वोट कांग्रेस के खाते में चला गया. अगर विधानसभा चुनाव में भी ऐसा होता है तो कांग्रेस की जीत पक्की कही जा सकती है. लेकिन, क्या ऐसा होगा? असल में इनेलो और जजपा का आधार जाट वोटर है. जाट आरक्षण व किसान आंदोलन के बाद से ही जाट भाजपा से बुरी तरह नाराज हैं. इसीलिए पिछले चुनाव में उन्होंने जजपा को खुलकर समर्थन किया, जजपा नेता दुष्यंत चौटाला भाजपा के खिलाफ मुखर थे. वहीं कांग्रेस अपने जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पीछे पूरी ताकत से खड़ी नहीं दिख रही थी. इस बार ऐसा नहीं है. भाजपा के साथ सरकार बनाने की वजह से जाटों का दुष्यंत पर भरोसा बहुत कम हो गया है और दूसरी तरफ कांग्रेस ने भी हुड्डा व उनके सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा को पूरा समर्थन दिया हुआ है. ऐसे में हुड्डा के लिए जाटों का समर्थन पाना आसान हो गया है. लेकिन, हुड्डा को पार्टी के भीतर सैलजा व रणदीप सिंह सुरजेवाला की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. हरियाणा में कई जगहों पर तो सैलजा के होर्डिंग भी लगे हुए हैं, जिन पर दलित को मुख्यमंत्री बनाने की बात कही गई है. इनेलो और जजपा इसे हवा भी दे रहे हैं और जाट मतदाताओं को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि कांग्रेस किसी जाट को मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी. जबकि हरियाणा का जाट हर हाल में अपनी चौधर चाहता है. इसलिए कहा जा सकता है कि कांग्रेस के लिए इनेलो व जजपा से छिटकने वाला जाट वोटर ही निर्णायक होगा.
जाटों का समर्थन पाना भाजपा की चुनौती
जहां, तक भाजपा का सवाल है तो पार्टी के अंदरूनी सर्वे बता रहे हैं कि वह मौजूदा हालात में सिर्फ 25 सीटें ही जीत सकती है. इस अनुमान की वजह भाजपा द्वारा पिछले चुनाव में जीती हुई वे सीटें हैं जहां पर भाजपा और दूसरे स्थान पर रहे प्रत्याशी को मिले मतों में काफी अंतर था. इन सीटों में प्रमुख रूप से हिसार, आदमपुर, अंबाला सिटी व कैंट, पंचकूला, भिवानी, अटेली, नारनौल, पटौदी, गुरुग्राम, कोसली, बावल, नांगल चौधरी, नारनौल, पलवल, करनाल, बल्लभगढ़, तिगांव, फरीदाबाद, पानीपत व पानीपत ग्रामीण और घरौंडा शामिल हैं. इनमें कुछ सीटें तो ऐसी हैं, जहां पर कांग्रेस चौथे नंबर पर रही है. भाजपा को कुछ उम्मीद ऐसी सीटों से भी है, जो वह पिछली बार बहुत कम अंतर से हारी थी. ऐसी सीटों पर वह राज्य के कद्दावर नेताओं को उतार सकती है. भाजपा का सबसे बड़ा संकट जाट बहुल सीटों पर है, क्योंकि इन सीटों पर पिछली बार सरकार में मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु (नारनौंद), ओमप्रकाश धनखड़ (बादली), पार्टी के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला जैसे बड़े जाट चेहरे भी हार गए थे. महेंद्रगढ़ सीट से मंत्री रामबिलास शर्मा की हार भी चौंकाने वाली थी.