अर्थलोक

घट रही कर्ज लेने वालों की उम्र

बढ़ती आय और आसानी से मिलने वाले ऋण ने बदला ट्रेंड

जब एचडीएफसी ने 1970 के दशक के अंत में होम लोन देना शुरू किया था, तब ऋण एक विशेषाधिकार हुआ करता था, जिसे लोग जीवन में देर से और बहुत सोच-समझकर लेते थे. इसके लिए एक बड़ा डाउनपेमेंट (पूर्व भुगतान) आवश्यक होता था और आमतौर पर 40 वर्ष की उम्र पार कर चुके व वर्षों से बचत करने वाले लोग ही ऋण ले पाते थे. आज भारतीय बहुत जल्दी और सहजता से ऋण लेने लगे हैं और बड़ी संख्या में लोग 20 वर्ष के मध्य में ही अपने क्रेडिट सफर की शुरुआत कर रहे हैं. पैसा बाजार द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि तीन पीढ़ियों में भारतीयों द्वारा पहला क्रेडिट उत्पाद लेने की औसत उम्र 21 वर्ष तक हो गई है. कॉरपोरेशन बैंक के पूर्व चेयरमैन और पांच दशक पहले बैंकिंग क्षेत्र में आए के. चेरियन वर्गीज कहते हैं कि ऋण लेने की क्षमता व्यक्ति की डिस्पोजेबल इनकम (खर्च के बाद बची आय) से सीधे जुड़ी होती है. उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत ऋण या तो किसी संपत्ति जैसे घर की खरीद के लिए लिए जाते हैं या उपभोग के लिए. 1970 के दशक में लोगों की डिस्पोजेबल इनकम इतनी नहीं होती थी कि वे ईएमआई चुका सकें. आज आईटी जैसे क्षेत्रों में कर्मचारियों को इतना वेतन मिलती है कि वे अपने खर्च निकालने के साथ-साथ ईएमआई भी चुका सकते है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि आज कई कॉरपोरेट नियोक्ताओं को पहले से ही बैंकों द्वारा पूर्व-स्वीकृति प्राप्त है और उनके कर्मचारियों को कई प्रकार के क्रेडिट उत्पाद आसानी से उपलब्ध कराए जाते हैं. जहां क्रेडिट ब्यूरो ने उधारदाताओं को डिफॉल्टर्स (ऋण न चुकाने वालों) की पहचान करना आसान बना दिया, वहीं जनधन-आधार-मोबाइल (जेएएम) त्रिकोण ने कर्जदारों को ट्रैक करना सरल बना दिया.

अध्ययन की कुछ खास बातें

1 करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं के क्रेडिट व्यवहार पर हुआ है अध्ययन

1960 के दशक में जन्मे लोग आमतौर पर 47 वर्ष की उम्र सिक्योर्ड लोन (जैसे मॉर्गेज) के माध्यम से क्रेडिट प्रणाली में प्रवेश करते थे

1990 के दशक में जन्मे लोग 25–28 वर्ष की उम्र में ही क्रेडिट जगत में प्रवेश कर लेते हैं, वह भी अनसिक्योर्ड उत्पादों जैसे क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन और कंज़्यूमर ड्यूरेबल लोन के जरिए.

1980 के दशक की शुरुआत में सेंट्रल बैंक और मास्टरकार्ड ने मिलकर लॉन्च किया था भारत में पहला क्रेडिट कार्ड

यह एक बहुत सीमित वर्ग के लिए था. मुख्यतः टैक्स चुकाने वाले उच्च आय वर्ग के लिए. बाद में जब सिटी बैंक, एसबीआई और आईसीआईसीआई ने इसे आम लोगों तक पहुंचाया.

उपभोक्ताओं की सोच में भी हुआ बदलाव

यह बदलाव केवल ऋण की आसान उपलब्धता ही नहीं, बल्कि उपभोक्ताओं की सोच में आए बदलाव को भी दर्शाता है. अब लोग लंबी अवधि की बचत से अधिक तत्काल संतुष्टि को महत्व देने लगे हैं. अध्ययन यह भी दिखाता है कि कैसे क्रेडिट सिस्टम में प्रवेश का तरीका बदला है.

1960 के दशक में जन्मे लोगों के लिए होम लोन पहला क्रेडिट उत्पाद था.

1970 और 1980 के दशक में जन्मे लोगों ने ऑटो लोन से शुरुआत की.

39 और 31 वर्ष की औसत उम्र रही ऐसार्ग्ज लेने वालों की

1970 के दशक में जन्मे लोगों के लिए पहली बार होम लोन लेने की औसत उम्र 41 वर्ष थी

1990 के दशक में जन्मे लोगों के लिए यह उम्र घटकर 28 वर्ष रह गई है.

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