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कहां तक पहुंचे बाल स्टार तथागत तुलसी और बुधिया सिंह

क्या आपको तथागत तुलसी या फिर बुधिया सिंह याद है। क्योंकि ये दोनों ऐसे बच्चे थे, जो बहुत ही छोटी उम्र में वह कर रहे थे, जो हम सब में अधिकतर बड़े लोग भी नहीं कर पाते। हम आपको याद दिलाते हैं कि ये दोनों क्यों चर्चित रहे और आजकल क्या कर रहे हैं।

तथागत अवतार तुलसी –

नौ सितंबर 1987 को जन्मे तथागत तुलसी पहली बार 1996 में चर्चा में आए जब उन्हाेंने सिर्फ 9 साल की उम्र में दसवीं की परीक्षा पास कर ली। इसके लिए उन्हें विशेष अनुमति दी गई, क्योंकि नियमों के मुताबिक 14 साल से पहले कोई दसवीं की परीक्षा में शामिल नहीं हो सकता था। यहीं नहीं उन्होंने 11 साल की उम्र में बीएससी और 12 साल की उम्र में पटना कॉलेज ऑफ साइंस से एमएससी भी कर ली। अगस्त 2009 में महज 21 साल की उम्र में उन्होंने बेंगलुरू के प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से पीएचडी की उपाधि हासिल की और बन गए डाॅ. तथागत अवतार तुलसी। एेसे होनहार छात्र को सम्मान देते हुए आईआईटी मुंबई ने 2010 में कॉन्ट्रेक्ट पर असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त कर दिया। 2013 में भौतिकी विभाग में तुलसी की नियुक्ति नियमित हो गई। लेकिन, इसके बाद तुलसी के साथ स्वास्थ्य संबंधी दिक्कत होने लगी और 2014 में वह बीमारी की वजह से लंबी छुट्टी पर चले गए। दिसंबर 2017 में छुट्टी खत्म होने के बाद भी वह काम पर नहीं लौटे तो संस्थान ने उनको नोटिस जारी किए। तुलसी ने आईआईटी मुंबई से आग्रह किया कि उसका तबादला आईआईटी दिल्ली कर दिया जाए, क्योंकि उनको मुंबई का मौसम रास नहीं आ रहा है। ऐसा कोई प्रावधान न होने की वजह से अाईआईटी मुंबई ने इनकार कर दिया। तुलसी ने संस्थान से इसके लिए राष्ट्रपति से विशेष अनुमति लेने का आग्रह किया, लेकिन ऐसा नहीं हो सका और 31 जुलाई 2019 को उन्हें आईआईटी मुंबई से बर्खास्त कर दिया गया। तुलसी अब 35 साल के हैं। उन्हें इसके बावजूद आईआईटी मुंबई से कोई शिकायत नहीं है।

बुधिया सिंह-

2002 में उड़ीसा में एक गरीब घर में पैदा हुआ बुधिया सिंह सिर्फ पांच साल की उम्र में ही पुरी से भुवनेश्वर तक 65 किलोमीटर की दूरी सात घंटे दो मिनट में दौड़कर दुनिया का सबसे छोटा मैराथन धावक बन गया। इसके लिए उसका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में आ गया और उसे 2006 में राजीव गांधी अवार्ड भी प्रदान किया गया। बुधिया जब दो साल का था तो उसके पिता की मौत हो गई और उसकी मां ने सिर्फ 850 रुपये में उसे एक फेरीवाले को बेच दिया। लेकिन, बाद में उसकी मां ने अनाथालय चलाने वाले एक जूडो कोच विरंची दास से अपने बेटे को वापस लाने की गुहार लगाई। विरंची ने फेरी वाले के पैसे चुका दिए और बुधिया बाकी बच्चों के साथ अनाथालय में रहने लगा।  एक दिन किसी बात पर विरंची ने बुधिया को दौड़ने की सजा दी और वह उसे भूल गया। पांच घंटे के बाद जब वह लौटा तो उसने देखा कि बुधिया अब भी दौड़ रहा है। इसके बाद विरंची दास ने उसे मैराथन के लिए प्रशिक्षित करना शुरू किया। चार साल की उम्र तक बुधिया 50 मैराथन दौड़ चुका था। 2006 की रिकॉर्ड मैराथन के बाद उसे भुवनेश्वर के भारतीय खेल प्राधिकरण के स्पोर्ट्स हॉस्टल में भर्ती करा दिया गया। पब्लिसिटी मिलने से बुधिया जल्द ही स्टार बन गया और उसे विज्ञापनों और अन्य कार्यक्रमों से कमाई होने लगी। बुधिया सिंह पर एक फिल्म भी बनी है और बीबीसी ने भी उस पर डॉक्यूमेंटरी बनाई है। 2008 में विरंची दास की हत्या हो गई थी। नौ साल तक स्पोर्ट्स हॉस्टल में रहने के बाद बुधिया घर वापस आ गया। वह अभी भी दौड़ता है और उसकी इच्छा ओलंपिक में भाग लेने की है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि बुधिया सिंह अब लंबी मैराथन में सक्षम नहीं है। वहीं उसकी मां और बहन सरकार पर बुधिया का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हैं। उनके मुताबिक बुधिया दिल्ली में है और वह अपने सपनों को पूरा करने की तैयारी कर रहा है। लेकिन, फिलहाल बुधिया अपनी बीती जिंदगी के बारे में कोई बात नहीं करना चाहता।

 

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