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म्यांमार में भूकंप से मची तबाही के बीच सेना ने नागरिकों पर बरसाए बम, जुंटा ने पार कर दी क्रूरता की हदें

नेपीडा: भूकंप से मची तबाही के बीच भी म्यांमार की सेना अपने ही लोगों पर एयरस्ट्राइक और ड्रोन हमले कर रही है। म्यांमार की सेना, जिसे जुंटा कहा जाता है, वो अभी भी बेरहमी से लोगों को मार रही है। दरअसल, म्यांमार में फरवरी 2021 में सेना ने देश की सरकार का तख्तापलट कर दिया था। उसके बाद से म्यांमार गृहयुद्ध की आग में जल रहा है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। सेना और आम लोग आमने सामने हैं। देश में कई विद्रोही गुटों का निर्माण हुआ है, जिन्होंने लगातार सेना के साथ मुकाबला किया है। जिसकी वजह से म्यांमार लगातार गृहयुद्ध की आग में जलता आया है। लेकिन किसी प्राकृतिक आपदा के वक्त लोगों पर बमबारी करना क्रूरता की सभी हदों को पार करना है। बीबीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि म्यांमार में भूकंप के बाद भी सैन्य परिषद ने हवाई हमले और ड्रोन हमलों को जारी रखा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक भूकंप प्रभावित क्षेत्र सागाइंग में भी एयरस्ट्राइक किए गये हैं। इस क्षेत्र में भूकंप से काफी नुकसान पहुंचा है फिर भी सेना ने यहां गोलीबारी की है। चाउंग यू टाउनशिप पीपुल्स डिफेंस फोर्स के मुताबिक स्थानीय समय के मुताबिक करीब 19:40 बजे सागाइंग के चाउंग यू टाउनशिप में न्वे ख्वे गांव पर दो बार बमबारी की गई है। इसके अलावा सेना ने दो और हमले कायिन राज्य के ले वाह में, करेन नेशनल यूनियन मुख्यालय के पास, और बागो क्षेत्र के प्यू में किए हैं।

म्यांमार ने 1948 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता हासिल की थी लेकिन देश में कभी भी शांति नहीं रह सकी। म्यांमार सालों से अशांति और सैन्य शासन को देखता आया है। साल 2011 में जाकर लगा कि आखिरकार म्यांमार लोकतंत्र के रास्ते पर चल निकला है जब चार सालों के बाद स्वतंत्र चुनाव कराने का फैसला लिया गया। इस इलेक्शन में आंग सान सू की ने जीत हासिल की। लेकिन 2021 में लोकतंत्र को लेकर सभी उम्मीदें खत्म हो गईं, जब जनरल मिन आंग ह्लाइंग के नेतृत्व में सरकार का तख्तापलट कर दिया गया और एक लोकतांत्रिक सरकार को उखाड़ फेंका गया। सेना ने नोबेल पुरस्कार से सम्मानित आंग सान सू की और उनकी सरकार के अन्य सदस्यों को हिरासत में लिया। उनके खिलाफ मतदान में धोखाधड़ी करने समेत कई आरोप लगाए गये। आंग सान सू की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने 80% से ज्यादा मतों से जीत हासिल की थी।

लेकिन इस तख्तापलट के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गये। सैन्य शासन का विरोध करने के लिए हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और नागरिक शासन की बहाली की मांग की। नागरिकों और सेना के बीच हिंसा तेजी से बढ़ती चली गई। जिसमें सेना ने भीड़ के खिलाफ आंसू गैस और रबर की गोलियों का इस्तेमाल करते हुए क्रूर बल का इस्तेमाल किया। मानवाधिकार समूहों का मानना है कि इस दमनात्मक कार्रवाई में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हुए हैं।

लेकिन इस वक्त जब म्यांमार एक शक्तिशाली भूकंप से जूझ रहा है और देश अलग अलग विद्रोही गुटों के चलते टूटने के कगार पर पहुंच चुका है फिर भी सेना समझने का नाम नहीं ले रही है। म्यांमार की सेना ने अचानक से मौत के आंकड़ों को काफी तेजी से आगे बढ़ा दिया है और कहा है कि मृतकों की संख्या एक हजार को पार कर गई है और 2376 लोग घायल हुए हैं। भूकंप की वजह से सबसे ज्यादा मौतें मांडले शहर में हुई है जो भूकंप के केन्द्र से सबसे ज्यादा नजदीक है। राहत और बचाव अभियान चल रहे हैं, लेकिन मांडले में एक बचाव दल ने कहा है कि वे “अपने नंगे हाथों से लोगों को बाहर निकाल रहे हैं”। भारत ने म्यांमार में मदद के लिए अपनी टीमों को भेजा है, लेकिन लोकतांत्रिक देशों को म्यांमार की सेना से बात करनी होगी कि प्राकृतिक आपदा के वक्त वो लोगों पर बेरहमी ना करे।

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