
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप दोस्त है या दुश्मन, यह सवाल इस समय भारत में सर्वाधिक चर्चा का विषय है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद ट्रंप लगातार ऐसे बयान दे रहे हैं, जो भारत के खिलाफ हैं या भारत को नुकसान पहुंचाने वाले हैं. इस बात को लेकर ट्रंप को दोस्त कहने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रक्षात्मक हैं. लेकिन क्या ट्रंप सिर्फ भारत के साथ ही ऐसा कर रहे हैं या उनके बाकी करीबी भी इस बात को महसूस कर रहे हैं. हकीकत यह है कि ट्रंप को दोस्त समझने वाले सभी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. अमेरिका ने अपने सबसे बड़े भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी (चीन) के साथ रिकॉर्ड समय में व्यापारिक संघर्षविराम किया, लेकिन पुराने सहयोगियों के साथ समझौता करना कहीं अधिक कठिन साबित हो रहा है. ट्रंप द्वारा 2 अप्रैल को पारस्परिक टैरिफ लागू करने के बाद अमेरिका ने 18 प्रमुख व्यापारिक भागीदारों की सूची बनाई, जिनसे वह वार्ता में ध्यान केंद्रित करना चाहता था. लेकिन, ब्रिटेन के साथ एक त्वरित समझौते और अब चीन के साथ टैरिफ में छूट को छोड़कर, अब तक किसी भी अन्य देश के साथ ऐसा समझौता नहीं हो पाया है जो भारी आयात शुल्कों से राहत दे सके. इस सूची में शामिल प्रमुख देशों में जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ के साथ बातचीत में सबसे बड़ा अड़ंगा कारों पर 25% अमेरिकी टैरिफ है जो इनको विशेष रूप से प्रभावित करता है. ब्रिटेन ने अमेरिकी वार्ताकारों के साथ अपनी फास्ट-ट्रैक डील में कुछ हद तक राहत पाई, लेकिन केवल पहले प्रत्येक वर्ष 1 लाख वाहनों पर, जबकि ये देश हर साल इससे कहीं अधिक कारें अमेरिका भेजते हैं. इस महीने की रिपोर्ट में टोयोटा, होंडा और निसान ने टैरिफ को अपने कमजोर लाभ अनुमानों के लिए जिम्मेदार ठहराया, और आंकड़ों से पता चला कि जापान की अर्थव्यवस्था पहली तिमाही में सिकुड़ गई, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि जापान निर्यात में गिरावट के प्रति संवेदनशील है.
जापान
प्रमुख व्यापार वार्ताकार रयोसेई अकाज़ावा ने कहा कि जापान ट्रंप द्वारा हाल ही में लगाए गए सभी टैरिफों को हटाने की मांग कर रहा है. इनमें कार, इस्पात पर लगे शुल्क के साथ ही 10% पारस्परिक टैरिफ शामिल हैं. उन्होंने इन शुल्कों को गंभीर रूप से खेदजनक बताया.
दक्षिण कोरिया
इन टैरिफों से छूट चाहता है. कोरिया के जेजू द्वीप पर उसके व्यापार मंत्री ने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि जेमीसन ग्रीयर से मुलाकात की. दक्षिण कोरिया के लघु और मध्यम उद्योग मंत्री ने हाल ही में ऑटो पार्ट्स इंडस्ट्री में 3.3 लाख नौकरियों की बात करते हुए क्षति को कम करने का वादा किया.
यूरोपीय संघ
कई सदस्य देशों के व्यापार अधिकारियों ने कहा कि वे अमेरिका के साथ ब्रिटेन से बेहतर समझौते की मांग करेंगे, जिसमें अधिकांश उत्पादों पर टैरिफ अभी भी लागू हैं. पोलैंड के उप अर्थ मंत्री मिखाल बरानोव्स्की ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि यूरोप उस स्तर के समझौते से संतुष्ट होगा जो ब्रिटेन ने किया है.
भारत
एक द्विपक्षीय समझौते को 8 जुलाई तक अंतिम रूप देने की तैयारी चल रही है. लेकिन, ट्रंप का कहना है कि उन्हें इस समझौते की जल्दी नहीं है. वह दावा करते हैं कि भारत ने जीरो टैरिफ का प्रस्ताव किया है. भारत सरकार इसका खंडन कर चुकी है और उसने साफ किया है कि कोई भी समझौता दोनों देशों के हितों के ही अनुरूप हो सकता है.
भारत-जापान ने नहीं की ट्रंप की आलोचना
ट्रंप की टैरिफ घोषणा और उसे 90 दिन तक टालने के बाद से अनेक देशों ने अमेरिका के साथ द्विपक्षीय समझौतों की कोशिश की है. प्रधानमंत्री मोदी तो इससे पहले ही ट्रंप के साथ इस पर बातचीत कर चुके हैं. टैरिफ घोषणा के बाद जापान सबसे पहले बातचीत शुरू करने वाला देश बना और तेज समझौते की आशा की गई. ट्रंप ने अक्सर पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के प्रति अपनी प्रशंसा व्यक्त की है, जिन्होंने 2016 में ट्रंप की जीत के बाद उन्हें सोने का गोल्फ क्लब भेंट किया था. यही नहीं, चीन के विपरीत, जापान व भारत ने ट्रंप के टैरिफ का कोई जवाब नहीं दिया और दोनों ने उनकी सार्वजनिक आलोचना से परहेज किया. अमेरिका भारत का बड़ा व्यापारिक साझीदार है और उसके साथ टकराव की बजाय भारत ने समझौते का रास्ता अपनाया. जापान पर भी अमेरिका का दबाव सबसे ज़्यादा असर डालता है. वे अमेरिकी बाज़ार और रक्षा दोनों पर पूरी तरह निर्भर हैं.
एशिया में चीजें सही दिशा में : बेसेंट
अमेरिका के वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने मंगलवार को कहा कि मैं एशियाई समझौतों पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं, जिनमें स्पष्ट रूप से चीन सबसे बड़ा है. भारत व जापान के साथ हमारी अच्छी बातचीत हुई है. एशिया भर में चीजें बहुत अच्छे से आगे बढ़ रही हैं. इसके बावजूद यह साफ नहीं है कि ट्रंप का अमेरिका किस दिशा में आगे बढ़ेगा.
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