
भारत के औषधि नियामक, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) के आंकड़ों के अनुसार, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र की कई फार्मास्युटिकल कंपनियां घटिया या कम गुणवत्ता की दवाएं बना रही हैं. अप्रैल महीने के आंकड़ों के अनुसार इन कंपनियों द्वारा बनाई गई अधिकांश दवाएं सुरक्षा मानकों पर खरी नहीं उतरीं और इन्हें घटिया गुणवत्ता वाली घोषित किया गया है. नियमित निगरानी के तहत दवा के नमूने बिक्री और वितरण स्थलों से एकत्र किए जाते हैं और उन्हें सरकारी प्रयोगशालाओं में जांचा जाता हैं. ड्रग नियामक प्राधिकरण के अनुसार अप्रैल में लगभग 60 नमूने गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरे. जिन दवाओं के नमूने फेल हुए हैं, उनमें कार्बोक्सीमेथिलसेल्युलोज सोडियम आई ड्रॉप्स (आंखों की कृत्रिम आंसू दवा), बुपिवाकेन हाइड्रोक्लोराइड इंजेक्शन (स्थानीय एनेस्थेटिक), कैल्शियम कार्बोनेट और विटामिन डी3 टैबलेट्स आदि शामिल हैं. हैरानी की बात यह है कि ये दवाएं गुजरात की गिड्शा फार्मास्युटिकल्स, हिमाचल प्रदेश के सोलन की मार्टिन एंड ब्राउन बायोसाइंसेज, हैदराबाद की साई पैरेंटेरल्स, फरीदाबाद की नेस्टर फार्मास्युटिकल्स जैसी कम जानी-पहचानी कंपनियों द्वारा बनाई गई हैं. मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि यह चलन कुछ समय से देखा जा रहा है. अधिकांश एमएसएमई कंपनियां घटिया गुणवत्ता वाली दवाएं बना रही हैं. इसी कारण स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवा कंपनियों के लिए मानक तय करने वाली एक अधिसूचना जारी की थी.
2023 में दवा कंपनियों के जोखिम आधारित निरीक्षण में पाया गया कि
65% से अधिक एमएसएमई कंपनियां कम गुणवत्ता की दवाएं बना रही थीं.
30% ऐसी इकाइयों को उत्पादन बंद करने के आदेश दिए गए,
68% कंपनियों के नमूने जांच में फेल हुए
सीडीएससीओ और राज्यों के ड्रग निरीक्षक देशव्यापी स्तर पर नकली और घटिया दवाओं के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के तहत अंजाम दे रहे हैं. यह जांच उस विवाद के बाद तेज हुई, जिसमें भारत में बनी खांसी की दवाओं को गांबिया में बच्चों की मौत का जिम्मेदार ठहराया गया था. जांच में पाया गया कि इन कंपनियों के ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर), गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली और उत्पादन प्रक्रिया की जानकारी में गंभीर खामियां हैं. उत्पादन संयंत्र की स्थिति और दवा की गुणवत्ता के बीच सीधा संबंध देखा गया है. हर महीने के आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि कुछ कंपनियों की एक ही दवा बार-बार फेल हो रही है. भारत के औषधि नियामक ने पहले भी यह कहा था कि मौजूदा नियमों और गुणवत्ता प्रबंधन प्रणालियों की समीक्षा की सख्त आवश्यकता है.