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डरावना है यह सच – ग्लोबल वार्मिंग से हो रही बेमौसमी बारिश, कई देशों में 60 गुना हो जाएंगी गर्मी से होने वाली मौतें

पिछले कुछ हफ्तों से पूरे उत्तर भारत में बारिश, आंधी, ओलावृष्टि और बर्फबारी हो रही है। अप्रैल के महीने में यह मौसम दो तरह से चिंता पैदा कर रहा है, पहला, खेतों में खड़ी फसल के खराब होने की आशंका बनी हुई है। काफी फसल खराब भी हो गई है। अप्रैल में देहरादून में चकराता की पहाड़ियों पर बर्फबारी का होना एकदम से नई बात है। दूसरी चिंता, यह है कि कहीं बेमौसम की इस वर्षा की वजह से आने वाले समय में मानसून कमजोर तो नहीं पड़ेगा अथवा मानसून में अतिवृष्टि तो नहीं होगी। अब अाप सोच रहे हैं कि ऐसा हो क्यो रहा है?  इसकी एक ही वजह है, ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन। हम आपको बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन हमारे लिए यानी पूरी दुनिया के लिए किस तरह की चुनौतियां लेकर आ रहा है? अगर दुनिया ने जल्द ही कदम नहीं उठाए तो अगले कुछ दशकों में दुनिया के अनेक हिस्से रहने लायक नहीं बचेंगे और समुद्र का जल स्तर बढ़ने से अनेक तटीय इलाके उसमें समा जाएंगे।

हाल ही में हुए अध्ययन के बाद पता चला है कि सबसे बड़ी चुनौती मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के सामने आने वाली है। इस सदी के अंत तक यहां अधिक तापमान से होने वाली मौतें 60 गुना बढ़ने जा रही हैं। यह डराने वाला है। तापमान बढ़ोतरी का असर पूरी दुनिया पर भी पड़ेगा। इसे ऐसे समझें- अभी यहां पर प्रति एक लाख लोगों में से दो लोगों की मौत गर्मी से होती है। लेकिन, ग्लोबल वार्मिंग से यह संख्या 123 प्रति लाख होने जा रही है। इसका सर्वाधिक असर ईरान पर पड़ेगा, यहां प्रति एक लाख में 423 लोगों की मौत गर्मी से होगी। जबकि, फिलस्तीन, इराक और इस्राइल में यह संख्या प्रति लाख 160 हो जाएगी। 2080 तक ब्रिटेन में ही गर्मी से मौतों की संख्या तीन गुना हो जाएगी। अभी यहां पर प्रति लाख तीन लोगों की मौत होती है, जो बढ़कर नौ हो जाएगी।

यूएई समेत खाड़ी के देशों पर गर्मी से मौतों का सर्वाधिक बुरा असर होगा। अापको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र की अगली जलवायु कॉन्फ्रेंस कोप 28 यूएई में ही होनी है। रिसर्चरों के मुताबिक गर्मी से होने वाली 80 फीसदी मौतों को रोका जा सकता है, अगर पेरिस समझौते के मुताबिक दुनिया के औसत तापमान को हम औद्योगिकीकरण से पूर्व के तापमान से 2 डिग्री अधिक पर रोक सकें। लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रोफेसर और इस अध्ययन के लीडर प्रोफेसर शकूर हजात का कहना है कि मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका में अभी गर्मी से होने वाली मौतों की संख्या काफी कम है, क्योंकि यहां की आबादी युवा है और उसके पास भीषण गर्मी से बचने के लिए एयरकंडीशनर व अन्य तरीके हैं। लेकिन, आने वाले सालों में बुजुर्गों की संख्या और जनसंख्या में इजाफा होना तय है, जिससे मौतों का आंकड़ा भी तेजी से बढ़ेगा। इसके अलावा कई तरह को सामाजिक आर्थिक बदलाव भी गर्मी से मौतों के बढ़ने की वजह बनेंगे।

इन क्षेत्रों उच्च उत्सर्जन की वजह से सामान्य तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुंच सकता है। ऐसे में हृदय रोग, सांस व किडनी की बीमरियों के साथ ही मधुमेह और न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए खतरा बढ़ जाएगा। इससे ऐसी स्थितियां उत्पन्न होंगी कि ये इलाके रहने लायक ही नहीं बचेंगे। आज भी अनेक देश ऐसे हैं, जहां पर दिन का तापमान 50 डिग्री रहता है, लेकिन सोचिए अगर यह आम तापमान हो गया तो क्या होगा। मशहूर पत्रिका लॉन्सेट प्लेनटरी हेल्थ में प्रकाशित इस अध्ययन में प्रोफेसर हजात ने कहा कि हमने ग्लोबल वार्मिंग के सिर्फ एक ही पहलू का अध्ययन किया है, लेकिन इसके कई अन्य पहलू हैं, जो मानव जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले हैं। उन्होंने कहा कि कड़े कदम उठाकर ही इन देशों में लोगों को बचाया जा सकता है। यहां की सरकारों को भी अपने लोगों को गर्मी से बचाने के लिए एयर कंडीशनर की बजाय अन्य विकल्पों को अपनाना चाहिए।

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